नेहा ने कंप्यूटर साइंस में बी.ई. करके कॉलेज में प्रथम स्थान प्राप्त किया. उसके पापा ने शादी – सम्बन्ध के बारे में बात की तो उसने बोला कि कुछ समय जॉब करना है. पापा को ये बात समझ में आई और जॉब करने की इजाजत दे दी. एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने वाली सोफ्टवेअर कंपनी में उसकी जॉब लग गयी. दो – ढाई साल कैसे गुजर गए पता ही नहीं पड़ा. फिर एक दिन पापा ने पूछा – नेहा, अब तो तेरे हाथ पीले कर दूँ? उसका मन अभी भी शादी के लिए राजी नहीं था. पर उसने अनमने भाव से हाँ कर दी.
महेशजी ने बी.ई. पास, आशीष नाम का लड़का, जो कि सरकारी नौकरी में ऊँचे पद पर था, उन्हें नेहा को देखने के लिए आमंत्रित किया. खूब सारी तैयारियां की गयी. घर सजाया गया. बैठक में खुशबु उड़ेल दी गयी. ढेर सारे व्यंजन बनाये गए. दुपहर लगभग १२.१५ बजे लड़का, सपरिवार आया. थोड़ी देर बाद नेहा सज-संवर कर आई. वो बहुत खुबसूरत लग रही थी. चाय पानी के बाद मेहमान बोल कर गये की दो रोज बाद जवाब देवेंगे. महेशजी को पता चला कि लड़के ने ना कर दी है.
खैर, कोई बात नहीं. महेशजी ने दूसरी जगह बात चलाई. इस बार भी लड़का बी.ई. पास था, और प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था. वो और उसके घरवाले नेहा को देखने आये. आदर सत्कार संपूर्ण था. उम्मीदे सभी को थीं. पर कहते हैं ना कि ईश्वर जोड़े ऊपर से ही बना कर भेजता है. उन्हें नेहा पसंद नहीं आई. महेशजी थोड़े से निराश हो गए थे.
एक दिन दूर के रिश्ते की मामीजी घर आईं. घर के ठन्डे माहौल को उन्होंने भांप लिया. नेहा की मम्मी से उन्होंने पूरी जानकारी ली और वो बोली ‘इत्ती सी बात, कल सम्बन्ध करवा देती हूँ, वो भी मनपसंद लड़के के साथ’. घर के सभी लोग चोंक गए और मामीजी को घूरकर देखने लगे. मामीजी के पास ऐसी कौनसी जादू की छड़ी है जो घुमाते ही रिश्ते करा देती है?
मामीजी बोलीं की जिस दिन लड़के वाले देखने आयें उस दिन लड़की को सैरन्ध्री की साड़ी पहनाओ. सैरन्ध्री की साड़ियों में साक्षात् द्रौपदीजी का वास है. पहनने वाली का आत्म विश्वास बढ़ जाता है और वो बला की खुबसूरत लगने लगती है. इनके यहाँ हर बजट की हर वैरायटी की, लेटेस्ट कलेक्शन की सैकड़ों डिज़ाइनर साड़ियाँ हैं. साड़ियों के अलावा, ब्राइडल साड़ी – सूट, लहंगा-चुन्नी, गाउन – इंडो वेस्टर्न, सब कुछ मिलता है. और हाँ ब्लाउज भी अपने पसंद का सिल कर देते है. चाहो तो आधी रात को भी मोबाइल पर पसंद करके आर्डर कर दो. ये साड़ियाँ www.sairandhri.com पर या उनके अग्रवाल नगर, इंदौर, शो रूम पर उपलब्ध रहती है.
नेहा की मम्मी आश्चर्य से बोली – अरे बाप रे, ऐसा क्या!!!!. हमें तो मालूम ही नहीं था. महेशजी बोले कि कल ही जाकर अपनी मन-पसंद साड़ियाँ लेकर आते है. तभी समझदार नेहा बोली कि कल तक क्यों रुकें? अभी मोबाइल पर चेक कर लेते हैं.
महेशजी अगले ही दिन से दुगुने उत्साह से एक नया रिश्ता खोजने में लग गए. उनके ही परिचित शहर के जाने-मने उध्योगपति प्रेमचंद जी गुप्ता का इकलोता बेटा धीरज शादी लायक है. बस, उनके यहाँ जा पहुंचे और नेहा को देखने के लिए आग्रह किया. गुप्ताजी नेहा को देखने सपरिवार पहुंचे. नेहा सैरन्ध्री की साड़ी पहन कर बला की खुबसूरत लग रही थी.
शर्माती हुई नेहा चाय लेकर ड्राइंग रूम में आई. चारों तरफ जैसे सन्नाटा छा गया. मानो हवा ने चलना रोक दिया. लड़का तो लड़का, लड़के के पापा और अन्य परिजन सब नेहा की खूबसूरती के कायल हो गए. उन्होंने नेहा को पसंद करके हाँ कर दी. महेशजी ने उसी मिठाई बुलवाई और लड़के का तिलक करके रोके की रस्म कर दी. चट मंगनी और १५ दिन में पट ब्याह करके नेहा और धीरज का घर बस गया. चारो तरफ सैरन्ध्री की धूम मच गयी. जिसे देखो वो सैरन्धी के शो रूम पर साड़ियों के लिए दौड़ पड़ा.