Doctor Ajay Goyal

सफलता का सफ़र

अमेरिका की सिलिकॉन वैली में दुनियाभर के कंप्यूटर जगत की नामी-गिरामी कई कंपनियों के मुख्यालय हैं, यहीं पर कंप्यूटर के क्षेत्र में कार्य करने वाली एक भारतीय कंपनी का मुख्यालय भी है। कंपनी के मुखिया,रघुजी के नेतृत्व में करीब 30 देशों में फैले हुए कार्यालयों और अमेरिका स्थित मुख्यालय में लगभग 5000 कर्मचारी कार्य करते हैं। उन्होंने शून्य से शुरुआत करके अपनी सोच और मेहनत से कंपनी को उस मुकाम पर पहुँचा दिया कि आज पूरा विश्व इसे जानने लगा है। इस कंपनी में काम करना ही एक प्रतिष्ठा की बात है। अमेरिका सरकार द्वारा रोजगार प्रदान करने में उल्लेखनीय योगदान के लिए रघुजी को विशेष रूप से पुरस्कृत किया गया।

फरवरी का महीना, बसंत पंचमी का दिन और सूर्योदय के समय चारों और चहल-पहल थी। इस दिन शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, नाट्य-संगीत और तकनीकी की देवी माँ सरस्वती की पूजा और वंदना का सालाना कार्यक्रम रखा गया था। देवी माँ की भक्ति को समर्पित गायन-वादन और भजन के कार्यक्रम को भारत से विशेष रूप से आमंत्रित संगीतकारों की टोली प्रस्तुत करने वाली थी। ‘अक्षरारम्भ’ के अंतर्गत कंपनी में आज के दिन नए नियुक्त हुए कर्मचारियों को कंपनी के प्रति निष्ठा रखने की शपथ भी दिलवाई जाती थी। कंपनी के मुख्यालय पर अलग-अलग देशों में स्थित कार्यालयों के प्रमुख भी उपस्थित थे।

आत्मीय वातावरण में चन्दन की महक घुली हुई थी। सजावट का कार्य करने वालों ने पीले फूल और हरी पत्तियों का प्रयोग करते हुए सभागृह को निहायत ही खूबसूरत बना दिया था। भारतीय परिधानों में सजे भारतीय और स्थानीय अमेरिकी युवक और युवतियाँ सभी को आकर्षित कर रहे थे। रघुजी के केबिन से सम्पूर्ण सभागृह का दृश्य नज़र आ रहा था।

कार्यक्रम की तैयारियों को अपने केबिन से ही देखते हुए रघुजी पुरानी यादों में खो गए। धुँधली सी याद है कि छुटपन में कैसे मम्मी उन्हें सुबह-सुबह तैयार करके भगवान के पाठ में तल्लीन ताऊजी के पास बैठा देती थी। वे भी आँख मीचकर, बगैर किसी को तंग किए बैठे रहते थे। ताऊजी पूजा खत्म करके गुड़ और खोपरे के बूरे का प्रसाद देते थे। प्राथमिक विद्यालय में प्रतिदिन होने वाली प्रातःकालीन प्रार्थना में गाए जाने वाली माँ सरस्वती की वन्दना मन को आल्हादित करती थी। माध्यमिक विद्यालय के सभागृह में देवी सरस्वती का धवल वस्त्र में वीणा बजाते हुए सादगीभरा बड़ा सा चित्र भी बहुत आकर्षित करता था। बसंत पंचमी के दिन विद्यालय में माँ सरस्वती के पूजन-अर्चन का विशेष कार्य होता था। कक्षा पहली से लेकर कक्षा आठवीं तक ही बाल-मन में इस प्रकार का भक्तिभाव रहा। बाद में पढ़ाई के बोझ और भविष्य को सँवारने की चिंता ने इस रुझान को कम कर दिया था। फिर भी अध्यात्म के प्रति उनका हमेशा ही लगाव रहा।

शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् आगे के पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन में कई लोगों से संपर्क हुआ। पिताजी का व्यापार आगे बढ़ाने के साथ ही नए-नए व्यापार और कम्पनियाँ जोड़ते हुए तरक्की की राह पर चलते गए। ऊँची तनख्वाह देने के बावजूद भी मन-माफिक कार्य करवाने के लिए अच्छे कर्मचारियों का अभाव था। मुझे विचार आया कि क्यों ना बच्चों को प्राचीन भारतीय ज्ञान और वर्तमान विज्ञान के सामंजस्य से तैयार किया जाए। इसी विचार को लक्षित करके ताऊजी के नाम पर एक विद्यालय की नींव बसंत पंचमी के दिन रखी गई। एक-एक ईट जोड़ते हुए प्राथमिक से लगाकर स्नातकोत्तर (Post Graduation) तक की शिक्षा देने की व्यवस्था की। मध्यमवर्गीय परिवारों के होनहार बच्चों को छात्रवृत्ति देकर उन्हें प्रोत्साहित किया।

विद्यालय के प्रतिभावान युवक-युवतियों को शिक्षा पूर्ण होने पर अपनी ही कंपनी के साथ जोड़ते हुए दोनों पक्षों की तरक्की के द्वार खोलकर मन-माफिक परिणाम प्राप्त किए। वर्षों का लक्षित प्रयास रंग लाया। कार्य के प्रति जवाबदेह और समर्पित युवाओं की टीम तैयार होने लगी। नई-नई योजनाओं के अनुसार समयानुकूल व्यापारों में निवेश करते हुए युवाओं को ज्यादा से ज्यादा जवाबदारी सौंपकर राष्ट्रीय स्तर का व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता चला गया।

– ‘सर, सभी तैयारियाँ हो गई हैं और आपको याद किया जा रहा है।’ अचानक आई किसी की आवाज से रघुजी की तन्द्रा भंग हो गई।

– ‘हाँ, अभी आया’, उन्होंने जवाब दिया।

भारतीय प्राचीन संस्कृति से ओत-प्रोत इस भव्य कार्यक्रम की शुरूआत सरस्वती वन्दना से हुई। गायकों और संगीतकारों के दल द्वारा दी गई प्रस्तुति ने समां बाँध दिया। नाट्य दल द्वारा भी विविध मनमोहक प्रस्तुतियाँ दी गई। कम्पनी के प्रति निष्ठा का कार्यक्रम ‘अक्षरारम्भ’ बहुत प्रभावी रहा। सबसे अंत में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों द्वारा अमेरिका और भारत दोनो देशों का राष्ट्रगान गाया गया। विदेशी धरती पर विदेशी लोगों के बीच एक पराई संस्कृति को स्थापित करना बहुत कठिन कार्य है। बहुत आग्रह करने पर रघुजी ने उपकार फिल्म का गीत ‘हे प्रीत जहाँ की रीत सदा…..’ सुनाया. गीत के अंतिम मुखड़े को पूरे सभागृह ने एक स्वर में गाकर माहौल को जीवंत कर दिया.

रघुजी द्वारा स्थापित ये उध्यम आज एक बड़े वटवृक्ष का रूप ले चुका है और हजारों लोगों की जीविका का माध्यम है। देखे गए सपनों का क्रियान्वयन होना उम्र के किसी भी मोड़ पर सुखदायक होता है।

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