इन दिनों में मीडिया पर एक विषय बहुत ज्यादा छाया हुआ है कि भारत में बेरोजगारी बहुत बढ़ रही है. आइए इस विषय पर विस्तृत चर्चा करें.
हमें अपने घर के लिए एक नल फिटिंग वाले की जरूरत होती है, पुताई करने के लिए आदमी की जरूरत होती है, बिजली के काम के लिए इलेक्ट्रिशियन की जरूरत होती है, सुतारी के काम के लिए सुतार की जरूरत होती है या घर दुकान के मेंटेनेंस के लिए कई प्रकार के कार्यों के लिए व्यक्तियों की जरूरत होती है। दिल पर हाथ रख कर बताना की क्या उस कार्य को अच्छे से करने वाले कर्मचारी उपलब्ध है? किसी अच्छे आदमी को यदि आप बुलाओ तो 4 फोन लगाना पढ़ते हैं. यानी कि इस लाइन के काम करने वाले सारे आदमी रोजगार से लगे हुए हैं.
अब बात करते हैं मजदूरों की. अगर आपको कोई छोटा-मोटा घर-दुकान का काम करवाना हो और आप मजदूर चौक से आदमी लेकर आएंगे तो वह 400 से 500 रुपये मांगता है। आप कस बट्टा करेंगे या भाव ताव करेंगे तो उसका एक ही जवाब होता है कि भैया आप तो निकल लो, थोड़ी देर बाद कोई और आकर इन्हीं भावों पर मुझे लेकर चले जाएगा। मतलब कि शहर में काम करने वाला मजदूर भी रोजगार से लगा हुआ है। आप हम्मालों को देखें या टैक्सी चलाने वालों को, रिक्शा चलाने वालों को ट्रांसपोर्ट लाइन से जुड़े हुए व्यक्तियों को रेस्टोरेंट में काम करने वाले वेटर को, इतनी जनसंख्या बढ़ जाने के बावजूद भी आसानी से कोई भी व्यक्ति नहीं मिलता है।
फिर यह बेरोजगार है कहां? हां है, जितने भी कॉलेज के पासआउटस हैं, उनके बारे में कहते हैं कि वह बेरोजगार हैं. वास्तविकता तो यह है कि नया पढ़ा लिखा जो व्यक्ति अपने काम को अच्छे से करता है भले ही वह अकाउंट्स का हो, इंजीनियरिंग का हो, या अन्य कोई स्ट्रीम का, सब की जरूरत है. ढूंढने पर भी योगी और अच्छे व्यक्ति बहुत मुश्किल से मिलते हैं।
कुछ पढ़े लिखे तो इतने नालायक और गधे होते हैं कि आश्चर्य इस बात पर होता है कि इनको कॉलेज ने कैसे पास कर दिया। असल में उनकी बेरोजगारी एक व्यक्तिगत समस्या है कि वह ढफोर शंख है, गधे हैं। इसके कारण बेरोजगार है। यदि उनमें थोड़ी बहुत भी योग्यता हो तो भारत का प्रत्येक व्यापारिक क्षेत्र या सर्विस क्षेत्र उनको लेने के लिए इच्छुक है।
अब आप ही सोचिए और बताइए की भारत में क्या वास्तविकता में बेरोजगारी है?