मेरी पिछली अमेरिका की यात्रा के समय भर गर्मी में भी बारिश और तूफान आ गया था। इंदौर से चला हुआ विमान दिल्ली देर से पहुँचा था. इस कारण से मेरा सेन-फ्रांसिस्को जाने वाला विमान छूट गया था। मुझे अगले दिन टोक्यो की बजाए हांगकांग होते हुए जाना पड़ा। इस बार पुनः अमेरिका जाने के लिए मेरा तीन तारीख का टिकट था। इंदौर से शाम पाँच बजे की उड़ान थी, जो एक घंटा बीस मिनट में दिल्ली पहुँचा रही थी। देर रात ढाई बजे की अन्तर्राष्ट्रीय उड़ान में लगभग आठ घंटे का अंतर था। इस बार मन में किसी भी प्रकार की व्यग्रता नहीं थी। दिल्ली में विमान समय पर पहुँच गया। मैं शटल के माध्यम से दिल्ली के टर्मिनल 1 से टर्मिनल 3 पर पहुँचा। अगली उड़ान जो कि लुफ्थांसा की थी, उसके उड़ने में बहुत समय था। मैं दिल्ली से फ्रैंकफर्ट होते हुए अमेरिका के सीएटल शहर जा रहा था। इस बार मैंने 23 घंटे पहले ही वेब चेक-इन करके दोनों उड़ानों में सीट आरक्षित कर ली थी। अच्छी सीट यानी ज्यादा से ज्यादा आरामदायक कुर्सी के लिए इंटरनेट से जानकारी निकाल ली थी। उसे वेब चेक-इन के माध्यम से आरक्षित करके चैन पाया।
लुफ्थांसा एयरलाइन्स प्रायः तीन घंटे पहले काउंटर खोलती है पर उस दिन साढ़े पाँच घंटे पहले ही उन्होंने काउंटर खोल दिया था। कोई लाइन नहीं थी। मैंने काउंटर पर जाकर बोर्डिंग पास लिए। उन पर विशेष निगाह लगाई और देखा कि सीट नंबर वही थे जो कि मैंने चुने थे। वहाँ से आगे चलकर आव्रजन की प्रक्रिया पूरी की। ज्यादा भीड़ ना होने के कारण ये कार्य भी शीघ्र पूर्ण हो गया। उसके पश्चात् एक लंबा समय विमानतल पर बिताना था। पूर्व योजना के अनुसार प्रायोरिटी पास का प्रयोग करके आरक्षित लाउन्ज में चला गया। समय काटने के लिए ये एक अच्छा स्थान है। वाई फाई, खाना, नहाना एवं कई अन्य सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। समय कब कट गया पता ही नहीं चला। पौने दो बजे के आसपास विमान के अंदर जाने वाले दरवाजे पर पहुँचा। उड़ने के पहले की औपचारिकताएँ पूरी करके ठीक समय पर हमारा विमान उड़ गया। ये एयरबस का B747-400 दो मंजिला विमान था। मेरी सीट ऊपर की मंजिल पर थी। कई अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों के बाद पहली बार इस प्रकार के विमान में यात्रा करने का मौका मिला था। इसमें प्रायः 750 यात्री बैठते हैं। मेरी यात्रा के इस विमान में ऊपर की लगभग पूरी मंज़िल फर्स्ट क्लास और बिज़नेस क्लास के लिए आरक्षित थी। इसलिए इसमें सीटें कम होकर 522 रह गई थी। इसे उड़ाने में 3 चालकों के साथ-साथ 21 सहकर्मी लगते हैं। ये विमान इतना बड़ा है कि इसमें 16 दरवाजे हैं और विमानतल में आने-जाने के लिए तीन आर्म्स लगते हैं। देर रात हो गई थी। अधिकतम व्यक्तियों ने भोजन नहीं करते हुए गहरी नींद के आगोश में चले जाना सही समझा।
फ्रैंकफर्ट जर्मनी का एक बहुत आधुनिक और समय के साथ तरक्की करता हुआ शहर है। लुफ्थांसा एयरलाइन्स का यहाँ पर मुख्य कार्यालय और विमानतल है। यहाँ पर इनके पूरे विश्व से विमान आते-जाते हैं। पता नहीं कितने सौ एकड़ में ये फैला हुआ है। चारों तरफ विमानों के आने-जाने का दृश्य बस स्टैंड की बसों की याद दिलाता है। स्थानीय समय के अनुसार अगले दिन सुबह 7 बजे हमारा विमान फ्रैंकफर्ट पहुँचा। सिएटल शहर की अगली यात्रा 3 घण्टे बाद थी, इसलिए विमानतल के बाहर नहीं जाना था। यहाँ का विमानतल बहुत बड़ा और फैला हुआ है। मेरी अगली यात्रा का टर्मिनल कुछ दूर था। एक छोटी ट्रैन में बैठकर दूसरे टर्मिनल पर पहुँचे। एक घंटे के पहले ही बोर्डिंग शुरू हो गई थी। ये वाला विमान भी एयरबस कंपनी का अच्छा बड़ा विमान था। समय पर यात्रा शुरू हुई। वहीँx विमानकर्मियों द्वारा यात्रियों का ख्याल रखते हुए नाश्ता और भोजन दिया। कई यात्रियों ने सिर्फ नाश्ता किया और सो गए। भले ही विमान की यात्रा हो, 12 घंटे की लम्बी यात्रा में यात्री पस्त हो जाता है। 7-8 घंटे के बाद नींद भी नहीं आती है और कुछ खाने की इच्छा नहीं होती है। पानी या अन्य कोई पेय पदार्थ लगातार लिए जाते हैं। मन में बस एक ही विचार रहता है कि कब यात्रा पूरी होगी।
स्थानीय समय के अनुसार उसी दिन सुबह 11 बजे सिएटल पहुँचा। यहाँ के विमानतल पर नवीनीकरण का काम चल रहा है। विमान उतरने के बाद लम्बा घूमकर विमानतल के दरवाजे पर पहुँचा। मैंने उतरने के बाद देखा कि आव्रजन की प्रक्रिया के लिए लंबी कतार है। समय का सदुपयोग करते हुए मैं ‘ग्लोबल एंट्री प्रोग्राम (GEP)’ के साक्षात्कार के लिए चला गया। अमेरिका के आव्रजन नियमों के अंतर्गत और GEP के अनुसार एक लंबी जाँच प्रक्रिया के बाद व्यक्ति को GEP में नामांकित करके एक पास आईडी दी जाती है। ये मिल जाने से अन्तर्राष्ट्रीय यात्रा के बाद अमेरिका के विमानतल पर उतरने के पश्चात् आव्रजन के लिए कतार में नहीं लगना पड़ता है। एक अलग रास्ते से निकलते हुए GEP के कियोस्क पर जाकर पासपोर्ट स्वाइप करके, GEP का पास आईडी डालकर और उँगलियों के निशान से अपनी आईडी प्रामाणिक करके बाहर निकल जाओ। इसमे एक मिनट से भी कम समय में आव्रजन की प्रक्रिया पूरी करके यात्री बाहर निकल जाता है। GEP पासधारक को TSA की सुविधा अपने आप मिल जाती है। सभी औपचारिकताएँ पूरी करके बाहर आया। होटल नज़दीक ही थी और होटल की शटल मेरा इंतज़ार कर रही थी। होटल में देवांग भी मेरा इंतज़ार कर रहा था। उसने पहले ही चेक इन कर लिया था इसलिए सीधे कमरे में चले गए। पहला दिन करने को कुछ भी नहीं था, सिर्फ आराम करना था, थकान उतारना थी, जेट लेग से बाहर आना था। कुछ देर बाद तैयार होकर सीएटल शहर देखने को निकले। अमेरिका और यूरोप के शहरों में आपके पास कोई निश्चित जगह जाने के लिए नहीं है तो वहाँ के डाउन टाउन चले जाओ। खूब खाओ और खूब सामान खरीदो। समय कब कट जाता है पता ही नहीं चलता है। हम आज डाउन टाउन में घूमे और सीएटल शहर देखा। अन्य सभी अमेरिकन शहरों की तरह साफ सुथरी सड़कें, ऊँचे-ऊँचे भवन, कोई चिल्लपों नहीं, स्वयं के काम से काम, दूसरे से कोई मतलब नहीं।
अमेरिका में 58 नेशनल पार्क हैं। जिनमे से कई तो 80 से 100 साल पुराने हैं। इनका रख-रखाव यहाँ के लोग और सरकार एक बच्चे की देखभाल के समान करते है। यहाँ के लोगों का सोचना है कि आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकृति की नियामत को कुछ और अच्छे से जोड़कर दिया जाए। इनको प्रकृति के साथ कोई छेड़छाड़ मंजूर नहीं है। यहाँ तक कि आप घास में नहीं चल सकते हो, कोई पौधे की पत्ती भी नहीं तोड़ सकते हो। हम सुबह जल्दी उठकर माउंट रेनियर नेशनल पार्क के लिए निकले। ये सीएटल से 100 किलोमीटर दूर है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और घना जंगल है। इतना घना कि पेड़ों की छाया के कारण जमीन पर दिन में भी अंधकार छाया रहता है। बर्फ के ग्लेशियर के नज़दीक होने के कारण रास्ते में बहुत सारे झरने मिलते हैं। जगह जगह रुकते हुए ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ कि एक रमणीय झरना बहुत ऊपर से गिर रहा था। यहाँ लोग उसे मिनी नियाग्रा के नाम से पुकारते हैं। उसी के पास पहाड़ों में जाने के लिए पगडंडी बनी हुई है। कई लोगों ने वहाँ जाकर आनंद लिया। उसके बाद हम पैराडाइस पीक पर गए। यह एक ठंडी जगह है। सर्दियों में 25 फुट से ज्यादा बर्फ गिरने के कारण ये जगह बंद हो जाती है। वहाँ के दी हेनरी एम् जेक्सन मेमोरियल विसिटर्स सेंटर से चारों तरफ पहाडों पर जाने के लिए पगडंडियां बनी हुई है। सभी का अपना-अपना नाम और दूरी है। उपलब्ध समय और हिम्मत के अनुसार यात्री किसी ना किसी पगडंडी पर जाकर पहाड़ों की चढ़ाई जरूर करते हैं। यहाँ पर दो घंटे बिताने के बाद लौटने की यात्रा शुरू हुई। ड्राइवर ही हमारा गाइड था। पूरे रास्ते में इन जंगलों और पहाड़ों के बारे में बताता रहा। समय कब कट गया पता ही नहीं चला। शाम को डाउन टाउन आए और खाना खाकर विमानतल के पास स्थित हमारी होटल आ गए। आने के बाद रात को ही सारा सामान पैक किया क्योंकि सुबह जल्दी पोर्टलैंड के लिए निकलना था।
आज 6 तारीख की सुबह जल्दी उठकर तैयार हुए और नाश्ता किया। होटल से डाउन टाउन स्थित एमट्रेक के रेलवे स्टेशन पहुँचे। टिकट की बुकिंग पहले से की हुई थी। समय पर यात्रा शुरू हुई। तीन घंटे का सफर था। अमेरिका के गाँव और छोटे-छोटे शहर देखे। छोटी-छोटी जगहों के रेलवे स्टेशन देखे। ये देश वाकई में बहुत खूबसूरत है। यहाँ की खूबसूरती का राज यहाँ के लोगों की देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव है। समय पर ट्रैन पोर्टलैंड स्टेशन पहुँची. हम टैक्सी लेकर होटल पहुँचे, जो कि नजदीक ही थी। होटल में चेक-इन करके जल्दी ही शहर में घूमने को निकल गए। पोर्टलैंड एक छोटा और बहुत खूबसूरत शहर है। इसे जानने के लिए हमने वॉकिंग टूर लिया। हँसमुख गाइड ने पोर्टलैंड के एक बड़े हिस्से का अच्छे से परिचय करवाया। यहाँ भी देखने में आया कि स्थानीय निवासी अपने शहर को अपने बच्चे के समान प्यार करते हैं, उसे संजो कर रखते हैं। उनके मन में ये भाव रहता है कि जितने समय तक उनका जीवन है तब तक ये शहर उनका है और उसके बाद आने वाली पीढ़ी को जब ये विरासत सौंपी जाएगी तो और बेहतर बनाकर देंगे। जैसा कि मैंने शुरू में बताया कि पोर्टलैंड को खाने-पीने का शहर कहते हैं, वो यहाँ आकर महसूस हुआ। चारों तरफ इसी प्रकार की दुकाने लगी हुई है। सभी के यहाँ दिनभर ग्राहकी लगी रहती है। दुनियाभर में प्रसिद्ध 24 घंटे खुली रहने वाली वूडू डो-नट्स इसी शहर की है. अमरीकन व्यवस्था के विपरीत यहाँ पर सिर्फ नकद में ही भुगतान स्वीकार किया जाता है. इसके अलावा नमकवाली आइसक्रीम, क्राफ्ट बीअर, तिलामुक चीस, हेज़ल नट्स, मूनस्ट्रुक आइसक्रीम, स्टंप-टाउन कॉफ़ी और बेरी से बना हुआ बेकरी का सामान यहाँ पर विश्व भर से पर्यटकों को खींचकर लाता है.
पोर्टलैंड अमेरिका के ओरेगन प्रांत का हिस्सा है। ये वही ओरेगन है जो कि आचार्य रजनीश (ओशो) की कर्मभूमि हुआ करती थी। यहाँ की सरकार ने ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करने के लिए सेल्स टैक्स शून्य कर दिया है। कुछ भी खरीदो कोई टैक्स नहीं लगता है। इसलिए छोटी जगह होने के बाद भी दुनियाभर की कंपनियों के शोरूम यहाँ पर उपलब्ध हैं। कम भाव के चक्कर में मोटी खरीददारी करने वाले अक्सर ओरेगन आते हैं क्योंकि अन्य राज्यों में सेल्स टैक्स की दर ज्यादा है। गाइड ने बताया कि यहाँ के पानी में प्राकृतिक तौर पर फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है. खूब घूमे, देर रात तक घूमे और बहुत आनंद लिया। वापस होटल आए और थककर चूर हो गए। बिस्तर में घुसते ही नींद आ गई।
अगले दिन सात तारीख को सुबह आराम से उठे। कोई काम या टूर नहीं था। तैयार होकर, नाश्ता करके एक बार पुनः पोर्टलैंड की तफरीह के लिए निकल गए। अमेरिका के शहरों में देखा कि हर दुकान चाहे सामान की हो या खाने-पीने की, हमेशा ग्राहकों से भरी रहती है। इसका मुख्य कारण यहाँ की उपभोक्तावादी संस्कृति है। व्यक्ति खर्च करता है इसके कारण अर्थव्यवस्था का हर पुर्जा चलता है। ये स्थिति में किसी भी देश को आने के लिए वर्षों लगते हैं। इसके लिए सरकार और समाज की सोच में बदलाव जरूरी है। शाम को सीएटल वापस लौटने के लिए पूर्व से आरक्षित ट्रैन थी। अनुमानों के विपरीत हमारी ट्रेन समय से कुछ देरी से चल रही थी। देर रात सीएटल के स्टेशन पर पहुँचे, उबर की टैक्सी बुलाकर होटल पहुँचे। कुछ सामान का ऑर्डर किया था, वो काउन्टर से लिया, कमरे में पहुँचे और सो गए। अगले दिन सुबह जल्दी निकलना था।
आज 8 तारीख, बुधवार को हम अमेरिका के माउन्ट ओलिम्पिक नेशनल पार्क के लिए निकले। इसके लिए हमें डाउन टाउन आना था, वहाँ से गाइड के साथ गाड़ी में जाना था। हमारा गाइड जो कि गाड़ी का ड्राइवर भी था, एक पढ़ा लिखा नौजवान था। विषय की उसको जबर्दस्त जानकारियाँ थी। शहर से निकलकर समुद्र के किनारे पहुँचे। वहाँ एक बड़े जहाज में गाड़ी सहित सवार हुए। फेरी 30 मिनट की थी इसलिए गाड़ी से जहाज में ही उतर गए। टूर पैकेज में नाश्ता और खाना शामिल था। ऊपर के डेक पर हमारे गाइड ने सभी को नाश्ता करवाया। हम साथ में पोहे, सेव, जिरावन और प्याज़ लेकर चले थे। बाकी नाश्ते के साथ इसका भी मज़ा लिया। कुछ समय के बाद सीएटल डाउन टाउन से चली हुई फेरी दूसरे किनारे बेनब्रिज आई लैंड पहुँची। पुनः गाड़ी में बैठकर इस द्वीप के अंदर की ओर माउंट ओलिम्पिक नेशनल पार्क की तरफ बढ़ चले। कितनी हरियाली है, कितना खूबसूरत है, आँखों पर भरोसा ही नहीं होता कि धरती इतनी खूबसूरत भी है। ये सब धरोहर वाली एक सोच का परिणाम है। बड़ी-बड़ी काँच की तरह साफ पानी वाली झीलें देखी। जंगल के अंदर गहरे जाकर वो हिस्से देखे जो कि इन लोगों ने सन 1938 से संजोए रखे हैं। इस पार्क के किसी भी हिस्से में किसी को भी पिछले इतने वर्षों में एक झाड़ तो क्या पौधा भी काटने की इजाज़त नहीं है। हैरान करने वाले 20 से 25 फुट डायमीटर के मोटे तने और लगभग 200 फुट ऊँचाई वाले पेड़ों का पूरा का पूरा जंगल मौजूद है। बीच बीच में ग्लेशियर से आते हुए साफ और ठंडे पानी की ढेर सारी छोटी छोटी नदियाँ मिली। हम एक चोटी की तरफ बढ़ रहे थे और मन प्रफ्फुलित हुआ जा रहा था। वहाँ पहुचकर हमारे गाइड ने थोड़ा आराम करवाया। उसके बाद प्रकृति के बीच में हम सब ने साथ बैठकर दोपहर का खाना लिया। भारत में होने वाली गोट-बाटी की याद ताजा हो गई। लगभग तीन बजे गए थे और अब लौट चलने की तैयारी हुई। रास्ते में एक झील के किनारे रुके. ठंडे और काँच की तरह साफ पानी में थोड़ा खेले। एक बार पुनः वापसी की यात्रा शुरू हुई । गाड़ी में अंग्रेजी संगीत बज रहा था। मेरे पास मोबाइल में सारेगामा एलबम के गाने थे। वो मैंने गाड़ी के वाई-फ़ाई से जोड़ दिया और सभी को भारतीय संगीत से परिचित करवाया। अद्भुत और विस्मित करने वाले संगीत में सभी लोग डूब गए। रास्ते में कई जगह पर ब्लैक बेरी की झाड़ियाँ लगी हुई थी। गाइड ने गाड़ी रोकी और सभी ने स्वयं के हाथों से तोड़कर खूब-खूब खाई। हम सभी पुनः फेरी से होते हुए सीएटल शहर पहुँचे। गाइड ने हमको डाउन टाउन के हमारी पसंद से रेस्टॉरेंट में उतार दिया। रात का भोजन करके और उसके बाद आइसक्रीम खाकर होटल पहुँच गए।
9 तारीख को जल्दी उठे, तैयार हुए, नाश्ता किया और हेलिकॉप्टर राइड के लिए निकल गए। सीएटल शहर में ही बोईंग विमान बनाने का कारखाना है। अन्तर्राष्ट्रीय विमानतल से सटा हुआ उनका खुद का बड़ा विमानतल है। हमे वहाँ जाना था। पूर्व निर्धारित समय पर बोइंग के विमानतल पर पहुँचे। हमारे यहाँ के बस स्टैंड पर खड़ी रहने वाली बसों से ज्यादा विमान उस विमानतल पर देखने को मिले। वहाँ बताया कि बहुत से तो निज़ी विमान और निज़ी हेंगर हैं जो कि अमेरिका के बड़े-बड़े व्यक्तियों के हैं। सभी औपचारिकताएँ पूरी करके हम भी हमारे हेलिकॉप्टर की और बढ़ चले। शरीर में जबरदस्त रोमांच भरा था। 20 मिनट सीएटल शहर के ऊपर घूमना था। एक विस्मयकारी और अविस्मरणीय अनुभव था। पॉयलेट के साथ सिर्फ मैं और देवांग थे। मात्र 1000 फ़ीट की ऊँचाई से सीएटल शहर के बिखरे हुए वैभव को देखा। ऊपर से ही माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स का भीx विशाल घर देखा। दूर से बोइंग की विमान फैक्ट्री भी देखी। 20 मिनट कब गुजर गए पता ही नहीं चला। उसके बाद हम डाउन टाउन मेंx आए जहाँ कि बैंक से संबंधित कुछ काम था। इस कार्य में कुछ ज्यादा समय लग गया पर हाँ, काम अच्छे से निपट गया। दोपहर के ढाई बज गए थे। हल्की सी भूख भी लगने लगी थी। चारों तरफ जिधर नज़र डालो वहाँ रेस्टॉरेंट नज़र आता था। एक अच्छे रेस्टॉरेंट में अच्छा खाना खाने के बाद डाउन टाउन में घूमने के लिए निकले। चारों तरफ खूब चहल-पहल थी। हर दुकान में ढेर सारे ग्राहक थे। समझ में नहीं आता कि ये अमेरिकन उधार लेकर इतना खर्च कैसे करते हैं? यहाँ पर एक सामान्य भारतीय थोड़ा बहुत खर्च कर सकता है। उसके बाद तो सिर्फ वस्तु की जानकारी लेना और विंडो शॉपिंग बचती है। शाम ढलने लगी थी, अंधेरे की शुरूआत हो चली थी। हम भी वापस अपने होटल की तरफ लौट चले।
10 तारीख को मेरा और देवांग का GEP के लिए अन्तर्राष्ट्रीय विमानतल पर साक्षात्कार था। अन्तर्राष्ट्रीयx विमानतल नज़दीक ही था। मेरा साक्षात्कार पहले ही हो चुका था फिर भी देवांग के साथ जाने के लिए मैं भी चला गया। पूछते हुए GEP के कार्यालय तक पहुँचे। अमेरिका के CBP विभाग के छः लोग अलग-अलग साक्षात्कार ले रहे थे। जल्दी ही हमारी बारी भी आ गई। वहाँ पता चला कि पहले जिस व्यक्ति ने मेरा साक्षात्कार लिया था उसने फ़ाइल बंद ही नहीं की थी। मुझसे इक्का-दुक्का सवाल करके मेरी फ़ाइल बंद की गई। उसके तुरंत बाद मुझे ईमेल आ गया कि मेरा GEP का आवेदन स्वीकार कर लिया गया है और मुझे पास ID दे दी गई है। देवांग से भी 10 मिनट तक विभिन्न प्रश्न पूछने के बाद बोला कि आपका आवेदन भी स्वीकार किया जाता है। बहुत खुशी के साथ हम बाहर आए और पास में एक माल में स्थित रेस्टॉरेंट में खाना खाया। हम दोनों को आज ही शिकागो जाना था। कुछ कारणों से दोनों की एयरलाइन्स अलग-अलग थी। मैं यूनाइटेड में और वो डेल्टा में था। मेरी उड़ान जल्दी थी। दोनों की उड़ानों के बीच ज्यादा फर्क नहीं था। हमने विमानतल के लाउन्ज में जाकर खाना खाया। वहाँ पता चला कि देवांग की उड़ान दो घंटा देरी से है। मेरा हवाई जहाज समय पर उड़ गया और समय पर ही शिकागो पहुँच गया। उबर की टैक्सी पकड़कर शिकागो के डाउन टाउन स्थित होटल पहुँचा। रात के 10 बज रहे थे। देवांग 12 बजे के आसपास आने वाला था। तब तक सामान खोलकर अलग-अलग कर लिया। भारत में कुछ ज़रूरी फ़ोन भी करने थे। उनसे निपटा ही था कि देवांग का फ़ोन आया कि वो शिकागो विमानतल पर पहुँच चुका है और गाड़ी में बैठकर 45 मिनट में पहुँच जाएगा। वो आया और थोड़ा बहुत खाकर हम दोनों सो गए।
शिकागो शहर की बसाहट: शहर के नियोजन की दृष्टी से दुनियाभर के शहरों में पहला नंबर शिकागो शहर का है. पुरे शहर को वर्ग माइल में बाँटा गया है. हर माइल में आठ ब्लाक हैं. प्रत्येक ब्लाक 660 फीट लंबा और 660 फीट गहरा है. जरुरत के अनुसार इसी अनुपात को ध्यान में रखते हुए कुछ ब्लाक के टुकड़े भी किये गए हैं. एक पैमाने के अनुसार प्रत्येक ब्लाक को 100 नंबर दिए गए है. पुरे शहर को उत्तर (N) और दक्षिण(S) में बाँट दिया है. स्टेट और मेडिसन के चौराहे से इसकी शुरुआत होती है. किन्ज़ी पहुँचेंगे तो 400N ख़त्म हो गया यानी आपने आधा माइल चल लिया है. इसके आगे शिकागो अवेन्यु पर 800N लिखा है. मतलब वहाँ तक की दुरी आधा माइल और है. डिवीज़न 1200N, नार्थ अवेन्यु 1600N, आर्मिटेज 2000N और फुलरटन 2400N पर है. पूर्व में पहला आधा माइल किंग ड्राइव 400E पर और पूरा माइल कोटेजे ग्रूव 800E पर ख़त्म होता है. इसी प्रकार पश्चिम में स्टुवर्ट अवेन्यु 400W, हालस्टेड 800W, रेसिन 1200W और एशलेंड 1600W पर स्थित है. अब आपको शिकागो में ये जानना है कि आप कितने माइल चले तो ये गिन लीजिए कि कितने सौ आप चले हैं. आठ सौ चल लिए मतलब आपने एक माइल का रास्ता तय कर लिया है. कितना सही और कितना आसान है. काश ऐसा नियोजन हमारे हिन्दुस्तान के शहरों में भी होता!
11 और 12 के दिन हमारे लिए सिर्फ मौज-मस्ती के थे। कोई ज़रूरी काम नहीं था। सुबह थोड़ा आराम से उठे और तैयार हुए। इन्दौरी पोहे-सेव का जिरावन और प्याज़ के साथ आनंद लिया। इसके अलावा गरमा-गरम कॉफ़ी और बिस्कुट लिए। ये हमारा रोज़ का ही नाश्ता था। इनमे से बहुत सी खाने की वस्तुएँ मैं इंदौर से ही साथ लेकर चला था। बाकी बिस्कुट और कॉफ़ी एक दिन पहले उसी शहर की दुकानों से लिए थे। कहीं भी जाओ यहाँ के लोग सबसे पहले शिकागो में रविवार 8 – 10 अक्टूबर, 1871 को लगी आग से बात की शुरुआत करते हैं. आग से 3.3 वर्ग माइल का हिस्सा जल गया था. इसमें 300 लोग मारे गए थे और एक लाख लोग बेघर हो गए थे. आग की शुरुआत की कहानियाँ तो कई सुनाई जाती है पर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कहानियों में श्रीमती ओ लेरी की गाय की कहानी है. उनकी गाय ने एक लालटेन को लात मार दी तो वो लालटेन भूसे के ढेर पर जा गिरी. भूसे के ढेर से पास ही की 137 डी कोवेन स्थित इमारत ने भी आग पकड़ ली और, और – और पूरा शहर जल पड़ा.
लज़ीज़ और मनपसंद नाश्ता करके शिकागो शहर को जानने के लिए सेगवे टूर पर निकले। सेगवे दो पहियों की बैटरी से चलने वाली रोलर स्केट जैसे मशीन होती है। इसकी अधिकतम गति 11-12 किलोमीटर होती है। शहर में घूमने और इसको जानने के लिए सेगवे से जाने के कारण कोई थकान नहीं होती है। ज्यादा लम्बा रास्ता भी नापा जा सकता है। पहली बार सेगवे चलाई। बहुत मज़ा आया। एक मिनट में चलाना सीख गए। टूर जो 2 घंटे का था, कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला। दोपहर हो चली थी और भूख लगने लगी थी। एक मेक्सिकन रेस्टॉरेंट चिपोटले में जाकर खाना खाया। उसके बाद मूवी देखने का कार्यक्रम था। हमे ‘मिशन इम्पॉसिबल – फाल आउट’ देखनी थी। हम जिस सिनेमागृह में गए वो तकनीकी तौर पर दुनिया का आधुनिकतम सिनेमागृह था। उसमें 4K का विज़न और डॉल्बी लैब का 11+2 चेनल का ‘एटमॉस’ तकनीकी का ऑडियो था। वो सिनेमागृह के साथ ही रेस्टॉरेंट भी था। सभी सीटें लंबी और आरामदायक थी। सीटों में ही खाना रखने के लिए बड़ी टेबल थी। मूवी के दौरान खाने -पीने की वस्तुओं का ऑर्डर करते जाओ, सामान आता जाएगा। इस मूवी को देखने का जबर्दस्त अनुभव रहा। इसे कभी नहीं भूलेंगे। वहाँ से आकर थोड़ी देर के लिए अपने होटल पर आए और आधा घंटा आराम किया। उसके तुरंत बाद फुटबॉल का एक लीग मैच जो कि न्यूयॉर्क रेड बुल्स और शिकागो फायर के बीच में होने वाला था, वह देखने के लिए स्टेडियम पहुँचे। जिंदगी में पहली बार फुटबॉल का लाइव मैच देखा। बहुत भीड़ और जबर्दस्त उत्साह था। आखरी समय तक दोनों टीमों के बीच में बराबरी की टक्कर होती रही। आखरी में न्यूयॉर्क की टीम एक गोल से जीत गई। जिस रास्ते से गए थे उसी रास्ते से होटल को लौटते चले आए। देर हो गई थी इसलिए आते हो सो गए। अगले दिन सुबह उठकर पता चला कि मेरे साथ MBA में पढ़नेवाला एक दोस्त प्रफुल्ल जैन यहाँ शिकागो आया हुआ है। उससे फ़ोन पर बात की और घंटे भर बाद मिलने का कार्यक्रम बना लिया। हमारे होटल से उसका होटल करीब पौने दो किलोमीटर दूर था। 10 मिनट में उसकी होटल पहुँच गए। पुरानी यादें ताज़ा की और अनुभव साझा किए। बहुत अच्छा लगा। कुछ देर के बाद ही हमे नेवी पियर से स्पीड बोट में जाना था। वहाँ से विदा होकर उबर पकड़ी और नेवी पियर पहुँचे। करीब 70 लोगों को एक बार में बैठाया जाता है। तेज़ गति से चलते हुए ब्रेक मारना फिर अचानक दाएँ या बाएँ घूम जाना। इनसे खूब पानी उछलता है और बैठे हुए व्यक्ति पूरे गीले हो जाते हैं। तेज़ संगीत के साथ इसका भी एक अलग ही मज़ा है। उसके बाद मिशिगन झील के किनारे से होते हुए 360 डिग्री नाम की जगह पहुँचे। ये शिकागो की सबसे ऊँची इमारत में स्थित है। यहाँ से पूरे शिकागो शहर का नयनाभिराम दृश्य दिखता है। इसी के साथ एक काँच पर लेटाकर हवा में 45 डिग्री लटका देते हैं। ये भी एक अलग ही रोमांच है। अमेरिका में बेस्ट बाय नाम की इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की एक प्रसिद्ध दुकान है। यहाँ पर एकदम आधुनिकतम तकनीकी वाला सामान मिलता है। बहुत भीड़ मचती है। उसकी दुकान नीचे ही थी। सिर्फ विंडो शॉपिंग करने का इरादा था। किंतु फिल्मों की एकदम लेटेस्ट और बहुत हिट हुई पुरानी फिल्मों की 4K एटमॉस ब्लू रे डिस्क देखकर मन मचल गया। बहुत सारी फिल्मों की ब्लू रे डिस्क ले ली। उसके बाद होटल आकर घंटा-आधा घंटा आराम किया। उसके पश्चात् होटल के सामने स्थित मिलेनियम पार्क में गए। रविवार होने के कारण बहुत भीड़ थी। यहाँ आकर अच्छा लगा। स्टील से बने हुए ‘बीन’ के साथ यादों को संजोए रखने के लिए फ़ोटो लिए। वहाँ से निकलकर खाना खाने की लिए एक होटल गए जहाँ की डीप-डिश पिज़्ज़ा लिया। पिज़्ज़ा स्वादिष्ट था। उसके बाद स्टारबक्स की कॉफ़ी पी और मफिन खाए। पेट पूजा हो चुकी थी। थोड़ी देर और डाउन टाउन की सड़कों पर भटकने के बाद होटल आए। अगले दिन सुबह वापस जाना था। इसके लिए मेरा और देवांग का सामान अलग-अलग करके नियत तरीके से जमाना था। मुझे दो सूटकेस 50 पाउंड प्रत्येक का वजन, के साथ जाने की इज़ाज़त थी। उसी के अनुसार सामान जमाया, हिसाब किया और सो गए।
13 तारीख से लौटने की यात्रा थी। मुझे जर्मनी के शहर फ्रैंकफर्ट से होते हुए भारत आना था। देवांग को पढ़ाई के लिए वापस साल्ट लेक सिटी जाना था। समय पर उठकर तैयार हुए और वही इन्दौरी नाश्ता किया। समय के पहले ही सारा काम हो रहा था। इतने में हाउस कीपिंग वाला इन-रूम-कंसम्पशन का बिल लाया। हमने तो कुछ लिया ही नहीं था। फिर भी बिल बना दिया। रिसेप्शन पर शिकायत दर्ज करवाई तो उन्होंने तुरंत उस बिल को खत्म किया और गलती के लिए माफी मांगी। हमने उबर बुलवाई। उबर से कई बार यात्रा करने के कारण उन्होंने इस बार उबर से अपग्रेड करके उबर एक्स की सुविधा बगैर किसी शुल्क के दे दी। इसमें हमें विमानतल तक लिंकन की बड़ी सारी गाड़ी छोड़ने आई। हम दोनों एक साथ उतर गए। हमारे वेब चेक-इन पहले से ही किए हुए थे। सारा सामान लेकर टर्मिनल 1 गए। वहाँ ये जानकारी मिली कि मेरा विमान जो कि लुफ्थांसा का था उसके बोर्डिंग पास का वितरण 1 बजे से होना था। इसमे 2 घंटे का समय था। उसके बाद हम यूनाइटेड एयरलाइन्स के टर्मिनल 2 गए जहाँ से कि देवांग का विमान उड़ना था। वहाँ जाते ही उसे बोर्डिंग पास मिल गया और हम उसके सिक्योरिटी चेक के दरवाजे तक पहुँच गए। 10 दिनों की मस्ती के बाद विदाई की बेला आई। मन भारी हो चला था। देवांग ने झुककर धोक दी और मैंने उसकी पीठ पर जोर से आशीर्वाद का धोल मारा। वो सिक्योरिटी चेक के दरवाजे की तरफ चला गया। में वहीं खड़ा होकर उसको अपलक देखता रहा जब तक की वो ओझल ना हो गया। मेरे पास बहुत समय था। मेंने लुफ्थांसा के काउंटर पर आकर मोबाइल पर समय काटा। कुछ देर के पश्चात् बोर्डिंग पास का वितरण शुरू हुआ। पास लेकर मैं सिक्योरिटी चेक की तरफ गया। पहली बार GEP का फायदा लिया। सिक्योरिटी चेक की अलग लाइन में लगे जिसमें की कुछ ही यात्री थे। फटाफट लगेज स्क्रीन भी हो गया और मैं बोर्डिंग गेट की तरफ बढ़ चला। बोर्डिंग में समय था, इसलिए थोड़ा बहुत खा लिया। समय पर औपचरिक्ताएँ पूरी करके विमान फ्रैंकफर्ट के लिए उड़ गया। बहुत थक जाने के कारण मैं सो गया था।
फ्रैंकफर्ट जर्मनी का तेजी से आगे बढ़ता हुआ दुनिया का एक आधुनिकतम शहर है। जब उतरे उस समय स्थानीय समय के अनुसार सुबह के सात बजे थे। आव्रजन की औपचारिकता पूरी करके सामान लिया, टैक्सी बुलाई और होटल के लिए चल पड़ा। होटल नज़दीक ही थी। चूँकि मैं चेक-इन समय के पहले आ गया था, रिसेप्शन पर खड़ी महिला ने इंतज़ार करने को कहा। थोड़ी देर बाद ही उन्होंने कमरा दे दिया। फ्रैंकफर्ट के डाउन टाउन में स्थित ये बहुत अच्छा और खूबसूरत होटल है। कुछ देर आराम करने के पश्चात् तैयार हुआ। वही पोहे-सेव, जीरावन और प्याज़ डालकर खाए और संतुष्टि पाई। इसके पश्चात् शहर भ्रमण को निकल गया।
जिस प्रकार से भारत के गाँव, कस्बे और शहर किसी ना किसी नदी के किनारे बसे हैं उसी प्रकार यूरोप के शहर भी बसे हुए हैं। फर्क इतना है कि हमसे गंगाजी भी नहीं सम्भल रही है जबकि यहाँ की छोटी से छोटी नदी का पानी काँच के समान साफ रहता है। गटर के गंदे पानी की निकासी पूरी तरह से अलग होती है। फ्रैंकफर्ट शहर भी ‘दी मेन’ नदी के किनारे बसा है। पुरा व्यावसायिक शहर है। जिस प्रकार से जर्मनी की राजधानी बर्लिन में अधिकतम सरकारी कार्यालयों की इमारतें नज़र आती है, फ्रैंकफर्ट में बड़ी-बड़ी कंपनियों और बैंकों की इमारतें दिखती हैं। कम जगह में भी इतनी ऊँची इमारत देखकर आश्चर्य होता है कि भारत में ऐसा कुछ करना हो तो कितनी मोटी रिश्वत देनी होगी और इज़ाज़त मिल भी जाए तो कब कौनसा अड़ंगा लग जाएगा इस का अंदाजा नहीं होता है। 100 या उससे ज्यादा मंज़िल की इमारतें ढेर सारी है। एकदम शांत गति से काम होता है। कोई आपाधापी नहीं रहती है। इतनी ज्यादा सफाई रहती है तो सन्देह होता है कि क्या ये विदेशी लोग कुछ उपभोग नहीं करते हैं?
फ्रैंकफर्ट की मुख्य सड़कों पर यूरोप और अमेरिका के अन्य शहरों के अनुसार दुनियाभर की बड़ी-बड़ी कंपनियों के शोरूम हैं। सामान की गुणवत्ता की किसी से भी तुलना कर लो, एकदम बेहतरीन है। कोई भी नई वस्तु बाज़ार में देना है तो यहाँ का बाजार ही चुना जाता है। चूंकि यहाँ के लोग भरे पेट के हैं, नए सामान के लिए मुँहमाँगा दाम देते हैं, बस वस्तु जंचनी चाहिए। सभी शोरूम में दिनभर जबर्दस्त ग्राहकी होती है। ये सब इनके उच्चस्तरीय सामाजिक स्तर के कारण होता है। ईमानदारी से खूब काम करते हैं, खूब कमाते हैं और खूब खर्चा करते हैं। स्वयं की हैसियत से ज़्यादा और कभी-कभी कर्ज़ा लेकर भी उपभोग किया जाता है। ऐसे में कंपनियों और देश की अर्थव्यवस्था का विकास होना ही है। ये ही इन देशों की तरक्की का सबसे मुख्य कारण है। देर शाम तक घूमता रहा, दुकान-दुकान भटकता रहा। लेने के सामान की कोई सूची नहीं थी। भारत तो छोड़ो अमेरिका की तुलना में भी यहाँ भाव ज्यादा होने के कारण कुछ भी लेने की इच्छा नहीं थी। अमेरिका के डॉलर का भाव यूरोप के यूरो की तुलना में कम है। भाव फर्क के बावजूद भी यूरोप में वस्तुओं के लिए डॉलर जितने ही यूरो देने पड़ते हैं। यहां पर सरकारी टैक्स भी ज्यादा है। थोड़ा बहुत जरूरत का सामान लिया। आज फिर आइसक्रीम के साथ स्वादिष्ट मेक्सिकन खाना खाया। शाम ढलने लगी थी, वापस होटल पहुँचने में रात होना ही थी इसलिए तेज़ कदम बढाते हुए वापस लौटने लगा। यहाँ पर ज्यादा से ज्यादा पैदल चलने का मौका मिल जाता है तो उसका फायदा जरूर लेता हूँ। वजन नियंत्रण में रहता है। होटल के कमरे में लौटने के बाद नहाया और कुछ देर ध्यान लगाने के बाद सो गया। नींद कब लगी पता ही नहीं चला।
सुबह से ही व्हाट्सएप्प पर जरूरी संदेशों की बाढ़ आ गई थी। उन सभी को देखने और वापसी जवाब देने के बाद तैयार हुआ। साथ लाया हुआ खाना पूरा ख़त्म हो चुका था इसलिए होटल में ही नाश्ता किया। यूरोप और अमेरिका में ताजे फलों की गुणवत्ता बहुत ही उच्चस्तरीय होती है। फल इतने रसीले होते हैं कि खाते समय उनसे रस टपकता रहता है। यहाँ की विदेश यात्रा के अंतिम पड़ाव पर घर के लिए ये रसीले फल ले जाना जरूरी होता है, घरवाले इनका इंतज़ार करते होते हैं। होटल से चेक आउट करने के बाद टैक्सी बुलाकर सामान रखा और विमानतल की तरफ चल दिया। टैक्सी वाले को बोल दिया था कि रास्ते में हमे फल लेने है इसलिए सही जगह पर रुककर ये काम भी निपटाया।
मेरी लुफ्थांसा की उड़ान थी। जिस विमान से आया था वही विमान जाने में भी था। बोइंग कंपनी का 747-800 विमान था जिसमें की सामान्य परिस्थितियों में 750 से ज्यादा यात्री बैठ सकते हैं। तीन चालकों के साथ 21 विमानकर्मी साथ रहते हैं। पूरे विमान में 16 द्वार हैं। फर्स्ट क्लास, बिज़नेस क्लास, प्रीमियम इकोनॉमी और इकोनॉमी के यात्रियों से विमान पूरा भरा हुआ था। मेरी सीट का नंबर पक्का नहीं हुआ था। काउंटर पर जाकर ही लेना था। विमान की इकोनॉमी श्रेणी में एक भी सीट ना बचने के कारण मुझे प्रीमियम इकोनॉमी में सीट दी गई। इकोनॉमी और प्रीमियम इकोनॉमी में बैठने में फर्क तो है। लंबी यात्रा में ये फर्क उभरकर आता है। मैंने इसका भी भरपूर आनंद लिया। सफर कब कट गया पता ही नहीं चला। इतने दिनों की यात्रा के पश्चात् अपने देश पहुंच गया। आव्रजन की प्रक्रिया पूरी की. मेरी इंदौर की अगली उड़ान के लिए टर्मिनल 1 पर पहुँचा। पूरी रात सो नहीं पाया था। खुली आंखों में ही नींद निकाल ली थी। सुबह पाँच बजे की उड़ान थी। विमान समय पर उड़कर इंदौर पहुँचा। भारत सरकार ने इंदौर को भारत का सबसे साफ-सुथरा शहर घोषित किया है। ये बात विमानतल से बाहर आते ही महसूस हुई। साफ-सफाई में यूरोप के किसी भी शहर की तुलना में इंदौर दो कदम आगे ही है। यात्रा के अंतिम पड़ाव में घर पहुँचकर एक आत्मिक और सुखद अहसास हुआ।