Doctor Ajay Goyal

फागुन

बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त में नेहा और चिराग की शादी हो रही थी। विवाह की समस्त रस्में लगभग पूरी हो चुकी थी। फेरे पड़ रहे थे। चारों तरफ उल्लास का माहौल था। सभी के रग-रग में खुशियाँ समाई हुई थी। एक तरफ दूल्हे राजा का परिवार बैठा था। उसके दोस्त क़दम-क़दम पर चुहलबाजियाँ कर रहे थे। दूसरी तरफ दुल्हन का परिवार भी पीछे नहीं था। हर आते हुए शब्दों के तीर का जवाब तोप से दिया जा रहा था। योग्य दामाद पाकर नेहा के मम्मी-पापा की वर्षों की साध पूरी हुई और मनपसन्द वर पाकर नेहा के पाँव तो जमीन पर ही नहीं टिक रहे थे। नेहा की छोटी बहन सुरभि ने अपने जीजू के जूते छुपा दिए थे। वो मोटे नेग की उम्मीद कर रही थी।

फेरे भी सम्पन्न हो गए और दूसरी रस्म निभाई के लिए मंदिर जाना था। परन्तु जूते गायब थे। सभी को सुरभि पर ही शक हुआ और उसी से पूछताछ हुई। दूल्हे का दोस्त नकुल ज़ोर से बोला – जूते कहाँ है? जल्दी लाओ। देर हो रही है। कोई उत्तर नहीं आया। कुछ देर तक सिर्फ आपसी नोकझोंक होती रही। आख़िरकार दूल्हे के फूफाजी बोले – क्या नेग चाहिए? जल्दी बोलो।

  • “पूरे इक्कावन हज़ार।” सुरभि जोश में बोली।
  • “तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया है?” फूफाजी चिल्लाए। “इतने में बीस जोड़ी जूते आ जाएँगे”।
  • “ठीक है, ले आओ 20 जोड़ी जूते। मैं तो इससे कम में नहीं मानूँगी।“ सुरभि बोली।

इतना भारी नेग सुनकर और कोई गुंजाइश ना देखकर दूल्हा अपने दोस्त के जूते पहनकर जाने लगा। बाजी पलटती देखकर सुरभि ने धीरे से पूछा – आप कितना देना चाहते हैं?

  • पूरे इक्कीस सौ। दो हज़ार का नया और उसके ऊपर सौ का कड़क नोट। “हे मर्जी तो दे अर्जी।”

आखिरकार, इक्कावन सौ में सौदा पटा। सुरभि ने जूते वापस कर दिए। दूल्हे के कान में धीरे से फुसफुसाई – “जीजू, बदला जरूर लूँगी, तैयार रहना।

शादी बहुत अच्छे से बगैर किसी विघ्न के संपन्न हुई। दुल्हन ससुराल विदा हो गई। नेहा और सुरभि की रोज मोबाइल पर बातें होती थी। होली का त्योहार आने वाला था। उसके ठीक बाद नेहा को गणगौर पूजन के लिए भी मायके आना था। कार्यक्रम ऐसा बना कि चिराग होली अपने ससुराल में मनाएंगे और बाद में नेहा को गणगौर पूजन के लिए मायके में छोड़ देंगे। सुरभि की तो लाटरी लग गई। मन ही मन बुदबुदाई – “अब ना छोडूंगी, ढेर सारा बदला लूँगी” और वो योजनाएँ बनाने लगी।

चिराग और नेहा घर आए। उनकी बहुत आवभगत हुई। आखिर कुंवरसा पहली-पहली बार ससुराल जो पधारे थे। चिराग ने आते ही कह दिया – मैं होली नहीं खेलूँगा। सुरभि ने भी उसी स्टाइल में जवाब दिया – मैं तो होली खेलूँगी और आपके साथ ही खेलूँगी। वे दोनों चिक-चिक करने लगे। नेहा ने ये कहते हुए बीच-बचाव किया कि जो होगा उसी दिन देखा जाएगा।

होली के दिन सुबह से ही चिराग ने सभी खिड़कियाँ बंद कर ली और दरवाजे में कुण्डी डालकर बैठ गया। नेहा और सुरभि की सहेलियाँ भी आ गयी। उन सभी ने चिराग को बाहर निकलकर होली खेलने के लिए बहुत बार मनाया पर वो टस से मस नहीं हुआ। दोपहर में नेहा ने दरवाजा खटखटाया और बोली कि 2 बज गए हैं, खाना लाई हूँ, अब तो दरवाजा खोल दो। पर चिराग तो जैसे कसम खाकर बैठा था। उसने दरवाजा नहीं खोला। दोपहर खत्म हो चली थी। उनकी सहेलियाँ भी चली गई। नेहा और सुरभि ने भी नहाकर कपड़े बदल लिए। चिराग ये सब दृश्य बार-बार खिड़की खोलकर देख रहा था। उसे भी बहुत ज़ोर से भूख लग आई थी। लगभग 4 बजे चिराग ने दरवाजा खोला और नेहा को आवाज लगाई – नेहा ।।।।। कहाँ हो? ज़ोर से भूख लगी है। नेहा बरामदे में थी और वहीँ से बोली इधर ही आ जाओ, साथ बैठकर खा लेंगे। चिराग निश्चिन्त होकर बरामदे में पहुँचा कि सुरभि और उसकी सहेलियाँ उस पर टूट पड़ी। चिराग भौचक्का रह गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि ये लोग इतनी देर तक इंतज़ार करेंगे। कोई उसके मुँह पर रंग चुपड़ रही थी तो कोई दोनों बाँहों को रंगने में लगी थी। सुरभि ने तो जीजू की टी शर्ट ऊपर करके पूरा पेट और पीठ रंग दी। कोई रुकने को ही तैयार नहीं थी। सुरभि का पूरा बदला जो लेना था। नेहा भी दिखावे भर का विरोध कर रही थी। शुरू में चिराग ने विरोध किया और खूब चिल्लाया। जब उसको समझ आ गया कि अब बचना मुश्किल है तो वो भी मजे के मूड में आ गया। फिर तो उसने जो धमाचौकड़ी मचाई कि एक-एक करके सब लडकियाँ भाग गई। आखिर में सिर्फ सुरभि और नेहा बची। एक बार फिर सभी ने जमकर यादगार होली खेली।

उसके बाद सभी लोग नहाने चले गए। होली का मूड अभी भी बरकरार था। इस रंगारंग माहौल में उज्जैन वाले भुआजी और फूफाजी भी आ गए थे। जोर से भूख लग रही थी और सभी ने डटकर समोसे, कचोरी, खमण और जलेबी का नाश्ता किया। रामू काका सात गिलास ठंडाई ले आए। चिराग ने धीरे से नेहा से पूछा – इसमें भांग तो नहीं है ना? नेहा बोली सभी तो यहीं हैं। रामू काका ने मिलाई हो तो नहीं पता। काका ने सभी को और सबसे आखिर में चिराग को ठंडाई दी। यहीं चिराग चूक गया। उसकी ठंडाई हल्का हरा रंग लिए हुई थी। उसमें नेहा ने पहले ही भांग मिला दी थी। चिराग ने एक ही बार में गटागट करके पूरा गिलास खाली कर दिया। कुछ ही देर में भांग ने असर दिखाना शुरू किया। चिराग बोला – “हम गाना गाएगा। अपनी महबूबा नेहा के साथ।” सभी चौंक गए। ये तो ऐसा नहीं था। पापा ने सुरभि की तरफ तिरछी नज़रों से देखा तो वो इधर-उधर देखने लगी। उन्हें सब समझ आ गया। बच्चों की ख़ुशी ही उनकी ख़ुशी थी। वो भी मजे के मूड में आ गए। चिराग के पास ही में एक ढोलक रखा था। वो उसे उठाकर जोर-जोर से लय और ताल के साथ बजाते हुए नाचने लगा। चिराग ने ढेर गाने सुनाए और खूब धमाल-चौकड़ी की। वो माहौल में ऐसे समा गया कि मानो उसकी शादी को 10 – 20 साल हो गए हों। देर रात को सभी ने खाना खाया। सुरभि का बदला भी पूरा हो गया था। अगले दिन की सुबह जल्दी की फ्लाइट से चिराग मीठी-मीठी यादों के साथ वापस लौट गया।

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