अर्पिता, कोमल और सुरभि, तीनों पक्की सहेलियाँ थी। इतनी पक्की कि मानो दान्त काटी रोटी। छठी से बारहवीं तक का स्कूल साथ था। उसके बाद तीनों का एक ही विषय और एक ही कॉलेज रहा। उनकी इतनी पुरानी और पक्की जोड़ी ने कई-कई मुहावरे गढ़ दिए, जैसे कि पिछले जन्म में ये तीनों जुडवाँ बहनें थीं, वगैरहा – वगैरहा। आपसी समझ इतनी तगड़ी थी कि कई बार एक ही विचार तीनों को एक साथ आता था। शायद कोई टेलीपेथी होती थी। दूसरी लड़कियों ने या यूँ कहें कि कच्ची सहेलियों ने तीनों में मतभेद करने की कई बार असफल कोशिश की। मन की साफ़ और स्पष्ट होने के कारण सभी के परिवारों को इनका साथ रहना सुखदायक लगता था। हाँ, एक चिंता घिरती थी कि शादी के बाद की जुदाई ये कैसे बर्दाश्त करेंगी।
अब तो कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई। तीनों ने कंप्यूटर साइंस में बी।ई। किया। ऊपर वाले का नजराना तो देखो, तीनों को एक ही कंपनी में पास के ही एक बड़े शहर में नौकरी मिल गई। चलो, कुछ समय का और साथ मिल गया। तीनों अभी तक तो अपने – अपने घर में रहती थी। पर अब साथ में रहने के कारण और नजदीकियां बढ़ेंगी। घर से किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी इसलिए तीनों ने मिलकर एक अच्छी बिल्डिंग में बढ़िया सा फ्लैट ले लिया। नया शहर और नई नौकरी के बावजूद तीनों का पुराना साथ होने के कारण घर वाले निश्चिन्त थे।
नई जिन्दगी की शुरुआत, नए शहर में, नया घर बसाते हुए, नई जवाबदारियों के साथ। जीवन में पहली बार पैसा कमाने के लिए नौकरी करना। पहले तो सिर्फ जबान हिलाने के साथ ही फरमाईश पूरी हो जाती थी। परिवार की तरफ से आगे भी रुपये पैसे के लिए मनाही नहीं थी, पर आप कमाई और बाप कमाई के फर्क का अहसास हो रहा था। नई जिन्दगी का शानदार आगाज हो गया था। पढ़ाई के बाद में जिन्दगी का पहला और नया काम। पूरे दिन लगातार काम करने के बावजूद भी थकान नहीं होती। सीखने की लगन और उत्साह के साथ ऑफिस का पूर्ण सकारात्मक माहौल। शाम को घर जाने के बाद भी कुछ ना कुछ करने का मन करता था।
महीना पूरा हुआ और जीवन की पहली कमाई हाथ में आई। खुशियाँ तो अपने उफान पर थी। जबर्दस्त उत्साह का संचार था। सबसे पहले ऑफिस से निकलते ही टिंकूज़ का सैंडविच खाया और कोल्ड कॉफ़ी पी। कमरे में एक नया ए.सी. लगवा लिया था, उसका भी पेमेंट कर दिया। अगले दिन रविवार होने के कारण शुक्रवार को लगी हुई नई फिल्म सुबह वाले शो में ही निपटा दी। उसके बाद सयाजी होटल में जाकर डटकर नाश्ता किया। घर आकर भर गर्मी में नए ए.सी. की ठंडी हवा में रजाई ओढ़कर जो सोये कि शाम कब हो गई पता ही नहीं चला। फटाफट तैयार होकर शाम को एक दूसरी फिल्म निपटा दी और रात को आते समय रेडिसन में खाना खाया। खुद की और दूसरे की बनाई हुई रोटी में आज फर्क समझ आया। जीवन का वास्तविक आनंद आज ही लिया।
जिन्दगी अपने रफ़्तार पर दौड़े चली जा रही थी। एक दिन सुबह – सवेरे ही सुरभि की दीदी और जीजाजी घर आए। उन्होंने बताया कि दीदी के दूर के रिश्ते के देवर, निशांत ने हाल ही में आई.ए.एस. की परीक्षा पास की है। वो दीदी की शादी में सुरभि से मिला था। निशांत के परिवार को सुरभि बहुत पसंद है और वे ये रिश्ता पक्का करना चाहते हैं। तीनों सहेलियाँ भौचक्की रह गई। ये क्या हो गया, अभी तो जिन्दगी की शुरुआत हुई है और लगाम लगाने की बात की जा रही है। सुरभि ने तो साफ मना कर दिया।
- दीदी, सुन लो, अभी दो साल तो कुछ कहना ही मत। मुझे अपने पैरों पर खड़ा हो लेने दो। जीवन में अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। बिलकुल भी तंग ना करना। सुरभि बोली।
उसके तेवर देखकर एक बार तो दीदी और जीजाजी को लगा कि कहाँ बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। वे कुछ रुंआसे हो गए। अर्पिता और कोमल भी वहीं थी। सारी बात समझने के बाद वे दोनों कमरे से निकलकर कुछ विचार – विमर्श करने लगी। पुनः कमरे में आकर उन्होंने दीदी और जीजाजी को कहा कि वे कहीं मार्केट में घंटे – दो घंटे में घूमकर आएँ, वे दोनों सुरभि से बात करेंगी।
- अब तुम दोनों मुझे समझाओगी? सुरभि बोली
- देख सुरभि, जीवन में शादी एक महत्वपूर्ण मुकाम होता है। अर्पिता ने कहा।
- आज नहीं तो कल, कभी ना कभी तो हमें और घर – परिवार छोड़ना ही पड़ेगा। कोमल बोली।
सुरभि के कुछ समझ नहीं आया। जीवन में पहली बार ऐसा मौका आया कि तीनों में दो सहेलियाँ एक तरफ और एक सहेली दूसरी तरफ थी।
- ज्यादा तेज़ मत चलो, मैं सब समझ रही हूँ। सिर्फ तुम दोनों ही जिन्दगी के भरपल्ले मज़े लेना चाहती हो और मैं घर परिवार के झमेले में पड़ जाऊँ? बिलकुल नहीं। सुरभि ने कहा।
- देख ऐसी बात नहीं है। अभी की जिन्दगी अभी की है और शादी के बाद की जिन्दगी अलग है। क्या शादी के बाद जीवन की मौज – मस्ती ख़त्म हो जाती है? अर्पिता ने सुरभि से पूछा?
- मैं सब समझ रही हूँ। लगता है कि दीदी और जीजाजी ने तुम दोनों को अलग से कुछ समझा दिया है। अब इस विषय पर कोई बात नहीं होगी। चलो जल्दी तैयार हो जाओ, ऑफिस के लिए देरी हो रही है। सुरभि ने कहा।
- मैंने पहले ही एच. आर. मेम को मैसेज कर दिया है कि हम तीनों ही आज छुट्टी पर रहेंगी, कोई पारिवारिक कार्यक्रम है। कोमल ने कहा।
- क्या…..? मुझ से पूछे बगैर ही मेरी भी छुट्टी ले ली? हे भगवान् ये क्या हो रहा है, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। शादी की बात मेरी चल रही है और उतावली ये दोनों हुए जा रही है। चाय से ज्यादा केतली गरम? सुरभि बोली
- देख सुरभि, समझने की कोशिश कर। ऐसे रिश्ते दुबारा नहीं आते हैं। तेरे पापा प्रथम श्रेणी ऑफिसर, तेरे जीजाजी आई.पी.एस. ऑफिसर और तेरे होने वाले पति कलेक्टर। और क्या चाहिए तुझे? तेज हम चल रहे हैं या फिर तू। ज्यादा शाणी मत बन। और कौन सी तुरंत शादी हो रही है। तेरी इच्छा के अनुसार लड़के वालों से बात करके छह – आठ महीने आगे का रिश्ता तय करवा देंगे। अर्पिता बोली।
सुरभि अवाक् से अर्पिता को देखने लगी। ये तो मम्मी – दीदी की भाषा बोल रही है। वो बात को टालते हुए पानी पीने के बहाने उठकर वहाँ से चली गई। अर्पिता और कोमल की आँखें मिली और ऐसा लगा कि पहला पड़ाव हासिल कर लिया है। सुरभि अधमुंदी आँखों से पलंग पर लेट गई। ये क्या हो रहा है? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। शादी करना क्या सामाजिक जोर-जबरदस्ती है? मैं क्यों परिवार और सहेलियों के दबाव में आऊँ? किन्तु मन ने फिर करवट ली। वो अब बड़ी हो गई थी। सामाजिक ऊँच – नीच और शादी का महत्व उसे समझ आ रहा था। कुँवारी जिन्दगी को कहीं ना कहीं विराम देना तो है ही। अगर मन – पसंद रिश्ता आया है तो अभी ही क्यों नहीं? इसी ऊहापोह में आँख कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला।
‘सुरभि उठ, जल्दी उठ, दीदी – जीजाजी आए हैं।’ दोपहर के बारह बजे के आसपास कोमल उसको उठा रही थी। वो हड़बड़ी में उठी। पूरे दो घंटे गहरी नींद में सोई थी। दीदी और जीजाजी के साथ निशांत भी था। गौरा चिट्टा और हट्टा – कट्टा, ऊंचाई लगभग 5 फुट 10 इंच। बहुत खुबसूरत, किसी फिल्म के हीरो जैसा। अर्पिता और कोमल तो उसको देखती ही रह गई। सुरभि ने उन दोनों के भाव पढ़ लिए थे। यानी उनकी तरफ से बात एकदम पक्की।
जीजाजी बोले हम सब दोपहर का खाना खाने के लिए होटल चल रहे हैं। इन लोगों ने जैसे ठान ही रखी थी कि आज बात पक्की करवा के ही मानेंगे। सुरभि और निशांत की आँखें कई बार दो – चार हुई। नए रिश्ते में आकर्षण आ रहा था। कली खिल रही थी, होने वाले जीवनसाथी के साथ के कुछ ही पलों ने उसके जीवन में नया मोड़ दे दिया था। सुरभि के हाव – भाव और मनोदशा सब कुछ बयां कर चुकी थी। बस जबान पर शब्द लाने की देर थी। लज़ीज़ खाने और आइसक्रीम के बाद वो दीदी और जीजाजी के पैर छूकर बोली, ‘जैसा आप चाहते है उसके लिए मैं तैयार हूँ।’ दीदी – जीजाजी की पहल रंग लाई। एक नए रिश्ते ने आकृति ले ली।
परदे के पीछे से अर्पिता और कोमल मंद-मंद मुस्करा रही थी। ये देखकर सुरभि ने तकिया उठाया और दोनों के पीछे दौड़ी। ये दृश्य देखकर सभी ने बहुत आनंद लिया। दिवाली के बाद, देवउठनी ग्यारस के पहले ही सावे में निशांत और सुरभि का लगन हो गया।
कलेक्टर की पत्नी को क्या कहते हैं? अर्पिता और कोमल का मन कैसा हो रहा था? ये पाठक ही सोचे तो बेहतर है।