Doctor Ajay Goyal

अमेरिका – समेटी हुई सम्पूर्णता

अमेरिका जाने का ख्याल मन में आते ही एक सुखद अहसास होता है. सोचिए कि जिस दिन वहाँ जाने के लिए निकल रहे हैं उस दिन शरीर में कैसा रोमांच उत्पन्न होता होगा! ये वैसा ही अहसास है जब व्यक्ति पहली – पहली बार विदेश यात्रा पर जा रहा होता है. मुझे इस बार दो कारणों से जाना था. पहला, बेटे की छुटियाँ लग गई थी और दूसरा कुछ व्यवसायिक कार्य थे.

बेटे के साथ घूमने जाना यानी कि पूर्ण निश्चिन्त हो जाना. यात्रा के पहले और इस दौरान वो ही सभी कार्य करता है. मेरी कुछ जवाबदारियाँ कम होने के कारण आनंद बढ़ जाता है. बच्चों के साथ चर्चा के लिए पारिवारिक मूल्य, सुखद जीवन एवं कई विषय होते हैं जिन पर पूरी फुरसत में ही चर्चा हो पाती है. वो पूरी फुरसत इसी प्रकार की यात्रा के समय ही निकलती है. मैंने भी इस समय का फायदा उठाकर बेटे से इन समस्त विषयों पर विचार साझा किए.

अंतर्राष्ट्रीय उड़ान दिल्ली से रात साढ़े बारह बजे की थी. दोपहर लगभग चार बजे की इंदौर से दिल्ली की उड़ान थी. छः घंटे का दिल्ली हवाई अड्डे पर इंतज़ार का समय था जो कि हर परिस्थिति के अनुकूल था. इंदौर से दिल्ली की यात्रा एक घंटा बीस मिनट की थी. विमान ने इंदौर से समय पर उड़ान भरी. एक घंटे के बाद कप्तान ने बताया कि विमान जयपुर के ऊपर से निकल रहा है. उसी समय बायीं ओर की खिड़की से बाहर झांका तो देखा की आसमान में घने काले बादल छाए हुए हैं. मौसम बदलने वाला था. इंतज़ार का समय लंबा होने के कारण मन निश्चिन्त था. कुछ देर पश्चात् विमान दिल्ली के नजदीक पहुँच गया और ऊपर आसमान में एक या दो चक्कर लगाए. सब ये ही सोच रहे थे कि विमान किसी भी समय नीचे उतरने वाला है और यात्रियों ने अपना – अपना सामान इकट्ठा करना शुरू कर दिया था.

विमान नीचे उतरने लगा. मौसम बहुत ज्यादा खराब था. जैसे-तैसे विमान का चालक विमान पर नियंत्रण करते हुए उसे नीचे ला रहा था. उतरते समय विमान बहुत हिचकोले खा रहा था. जमीन छूने के ठीक पहले विमान बायीं तरफ झुका. हमे अंदेशा हुआ कि कोई दुर्घटना ना हो जाए. विमान चालक ने नियंत्रण करने के लिए विमान को तुरंत दायीं तरफ मोड़ा तो विमान का दायाँ पंख जमीन की तरफ गया और उसे छूने ही वाला था कि चालक ने ख़तरा भाँपा और विमान को ऊपर आकाश में उठा लिया. कुछ लोग जिन्होंने सीट बेल्ट नहीं लगा रखा था वो दूसरी तरफ जा गिरे. पैरों में रखा हुआ कुछ सामान भी इधर – उधर लुढ़क गया. जान बची पर नई मुसीबत आ गई. विमान चालक ने घोषणा की कि हम विमान को अमृतसर ले जा रहे हैं. करीब ३० मिनट का सफ़र रहेगा. जब भी दिल्ली में मौसम ठीक हो जाएगा, विमान पुनः दिल्ली लौट आएगा. मन अभी भी निश्चिन्त था क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय उड़ान में बहुत समय था.

विमान अमृतसर पहुँचा. मुख्य विमानतल से दूर विमान को खड़ा कर दिया गया. सारे दरवाजे खोल दिए और सीढ़ियाँ लगा दी गई. किसी को भी नीचे उतरने की इजाज़त नहीं थी. हल्का नाश्ता सभी को दिया गया. विमान चालक से बातचीत हुई तो उसने बताया कि दिल्ली का मौसम अभी भी ठीक नहीं हुआ है. उड़ान भरने की इजाज़त नहीं है. अब मन में बेचैनी बढ़ने लगी. आधे घंटे के पश्चात् विमान के उड़ान भरने की घोषणा हुई. मन प्रफुल्लित हो गया. उल्टी घड़ी चलाकर समय की गणना की तो लगा कि अभी भी समय है. अंतर्राष्ट्रीय उड़ान पकड़ने में कोई समस्या नहीं आएगी. दिल्ली से अमृतसर का सफ़र सिर्फ आधे घंटे का ही तो था. पर समय का फेरा कुछ और कह रहा था. दिल्ली में उतरने और पुनः उड़ने वाले विमानों की कतार लग जाने के कारण विमान धीमी गति से दिल्ली की तरफ जा रहा था. एक घंटा बीतने के बाद दिल्ली पहुँचे. उसके बाद विमान ने दिल्ली के ऊपर उतरने के पहले आधा घंटा चक्कर लगाया. अतिरिक्त समय अब बचा नहीं था. एकदम तेजी और जापान एयरलाइन्स (ANA) वालों की मेहरबानी ही अंतर्राष्ट्रीय उड़ान पकड़वा सकती थी. दिल्ली विमानतल पर उतरते ही जापान एयरलाइन्स वालों से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वो अगले 15 मिनट तक मेरे लिए काउंटर खोल कर रखेंगे. कुछ जान में जान आई क्योंकि एक परिचित की गाड़ी दिल्ली के टर्मिनल 1 से टर्मिनल 3 पर ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. मात्र 10 मिनट का सफ़र था. पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. सामान आने में लगभग 25 मिनट लग गए. अब कोई उम्मीद बाकी नहीं थी. फिर भी आदत के अनुसार विपरीत परिस्थितियों में भी प्रयास करते हुए गाड़ी से टर्मिनल 3 की तरफ चले. जल्दी – जल्दी में सामान उठाया और भागते हुए जापान एयरलाइन्स के काउंटर पर पहुँचे. वहाँ स्थित कर्मचारी ने बताया कि अभी एक मिनट पहले ही जाने वाले यात्रियों की सूची को अंतिम रूप देकर विमान के कर्मीदल को दे दी है. किसी भी प्रकार का निवेदन काम नहीं आया.

रात दो बजे दिल्ली में ही एक होटल पहुँचा. ट्रेवल एजेंट को रात को जगाकर संपूर्ण घटनाक्रम की जानकारी दी और जापान एयरलाइन्स का टिकट निरस्त करके नया टिकट लेने को कहा. उसने सुबह जल्दी ही ये कार्य करने की हांमी भरी. सुबह आठ बजे के आसपास ट्रेवल एजेंट का फ़ोन आया कि मेरा जापान एयरलाइन्स का टिकट बहुत कम पैसे काट कर निरस्त हो गया है. इसमें मेरा वापसी का भी टिकट निरस्त हुआ था. नया टिकट केथे पेसिफिक् का वाजिब दामों पर हो गया. उड़ान के समय और दिन मेरे पुराने टिकट के अनुसार ही हुए इससे मेरे दूसरे टिकटों में कोई परिवर्तन नहीं कराना पड़ा. दिल्ली से हाँगकाँग की छोटी सी चार घंटे की यात्रा थी. नया विमान था और सीट आरामदायक थी. दिल्ली से विमान उड़ा था तो वेज खाने की समस्या नहीं आई. उसके बाद हाँगकाँग से सेनफ्रांसिस्को की लम्बी 12 घंटे की यात्रा थी. विमान बोईंग कंपनी का 777-300ER था. इसकी 71G क्रमांक की सीट मिली जो कि बहुत आरामदायक थी. एकदम पीछे और खूब सारा लेग स्पेस। पहले से बोलने के बाद भी इस फ्लाइट में वेज खाना नहीं मिला।

आज चार तारीख हो गई थी. उड़ान समय पर सेनफ्रांसिस्को पहुँच गई। अमेरिका तो अमेरिका है! सभी के चेहरे खुशनुमा लगते हैं। उनका डॉलर मजबूत रहे इसके लिए दुनिया उनके लिए काम करती है। आगमन पर कस्टम्स एवं बॉर्डर प्रोटेक्शन CBP का फॉर्म भरा। देवांग का खाने का सामान था। मन में उत्तेजना थी कि सामान कहीं वापस ना निकाल दे। हालांकि फॉर्म में भी लिख दिया था कि खाना लाया हूँ। बहुत जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था थी। आव्रजन की औपचारिकता में ज्यादा समय नहीं लगा. सामान लिया और जल्दी ही बाहर निकल गया।

विमानतल के बाहर आकर टैक्सी ली। टैक्सी वाले ने कहा कि चार डॉलर अतिरिक्त लूँगा. मैंने हामी भरी. गंतव्य पर पहुँच कर भाड़े के 42 डॉलर लगे। खुल्ले नहीं थे तो उसने पूरे 50 डॉलर झटक लिए। देवांग ने होटल में पहले से ही कमरा ले रखा था। हमने काउंटर पर जाकर रुकने वाले दूसरे व्यक्ति की एंट्री करवाई। सफर की थकान थी जो कि नहाकर भी दूर नहीं हुई थी। साथ लाया सामान खोलकर नियत जगह रख दिया। साथ लाए हुए सामान में से निकालकर कुछ खाया पिया उसके बाद चेन मिला। जो कार्यक्रम बनाया था उसे देवांग के साथ समझा और उसी के अनुसार बाहर निकल गए।

किसी भी स्थान पर होटल हमेशा शहर के मध्य में ही लेना चाहिए. इसके कई फायदे होते हैं। छोटे या बड़े किसी भी कार्य के लिए कई बार आ जा सकते हैं। हमारी होटल बहुत बड़ी थी। गरम पानी के स्विमिंग पूल में नहाए। होटल वाले ने नाश्ते के दामों में भयानक लूट मचा रखी थी। 39 डॉलर में एक व्यक्ति का नाश्ता और टैक्स लगाकर 50 डॉलर हो गए। नाश्ता वही सामान्य जो कि 15 डॉलर का मिलता है। 70 रुपए का डॉलर 10 रुपए में चला। चीज़ केक फैक्ट्री नाम के रेस्टारेंट गए थे – महँगा पर अच्छा रेस्टारेंट है।

आज पाँच तारीख को गिलरॉय गए. इसे गार्लिक सिटी ऑफ़ अमेरिका के नाम से जाना जाता है. वहाँ जाने के बाद समझा कि ऐसा वहाँ पर कुछ भी नहीं है कि इस जगह को ‘गार्लिक सिटी ऑफ़ अमेरिका’ के नाम से जाना जाए. दो दुकानें हैं जो कि लहसुन से संबंधित सामान बेचती है – गार्लिक वर्ल्ड और गार्लिक शॉप। इनका खुद का लहसुन का कुछ भी प्रोसेसिंग नहीं है। सब कुछ बाहर से खरीदा हुआ सामान बेचते हैं. गार्लिक फार्म में तो ऑटोमोबाइल की दुकान हैं। व्यक्ति इतनी दूर उम्मीद लगाकर आता है तो सोचता है कि आए हैं तो कुछ ले ही लें। बहुत अच्छा प्रचार होने के कारण नाम चल गया है.

उसके बाद पियर 39 गए थे। बहुत खूबसूरत जगह है। चमचम करती रहती है। मौज-मस्ती करने बहुत लोग आते हैं। वही पर घीराडेली की बड़ी और मुख्य दुकान है। चॉकलेट से सम्बंधित सभी सामान उपलब्ध है। जो नहीं सोचा वो भी वहाँ मिलता है. ग्राहकों का दिनभर मेला लगता है. उसी दुकान से सेनफ्रांसिस्को की यादगार वस्तु ली। देर रात होटल पहुँचकर सो गए।

आज छः तारीख हो गई थी. आज के दिन कार्यक्रम के अनुसार सिर्फ घूमना और घूमना ही था. इस शहर का डाउन टाउन देखा. दुनियाभर के प्रमुख ब्रांड की दुकानें यहाँ पर लगी हुई है. कोई व्यक्ति चाहे जितना धनवान हो, उसकी जेब में कितना भी माल है, सब खर्च हो जाएगा. इतनी वस्तुएँ हैं कि मन नहीं भरता है. सभी दुकानें ग्राहकों से भरी पड़ी रहती हैं. इन अमेरिकनों के पास इतना धन आता है कि सस्ता हो या महँगा, हर प्रकार के माल के लेवाल हैं. यहाँ कि अर्थव्यवस्था बहुत पुरानी है. इसको इस प्रकार से प्रबंधित किया जाता है कि दुनियाभर के सभी देश अमेरिका की मुद्रा डॉलर में व्यापार करते हैं. डॉलर का मूल्य और इज्जत बनी रहे इसके भरपूर प्रयास करते हैं. ऐसे में डॉलर का असली मालिक एक आम अमेरिकन व्यक्ति तो राजा बनेगा ही सही. मेहनत करेगा, खूब डॉलर कमाएगा और खूब खर्च करेगा. ऐसे में अमेरिका की अर्थव्यस्था सातवें आसमान पर उड़ेगी. हमने भी अपनी जरूरत और हेसियत के अनुसार खरीददारी की. कुछ प्रसिद्ध रेस्टोरेंट में जाकर सुबह, दोपहर और रात का खाना खाया.

आज सात तारीख को सुबह ही लॉस-एन्जेल्स के लिए निकल गए। हमने उबर की टैक्सी बुलवाई थी। आजकल उबर और टैक्सी दोनों एक ही शब्द हो गए हैं. किसी को टैक्सी बुलाना हो तो कहते हैं कि उबर बुलवा लो. अमेरिका में उबर कंपनी ने टैक्सी की सेवा देने के क्षेत्र में एकतरफ़ा दबदबा कायम कर लिया है. कई वर्षों से स्थापित इस क्षेत्र के दूसरे धंधे पिट गए हैं. होटल वाले या स्थानीय टूर ऑपरेटर, सभी की टैक्सियाँ खड़ी हो गई हैं. कहीं पर भी उबर से जाओ, क्रेडिट कार्ड से निश्चित भाड़ा दो, भाड़े या नकद की कोई चिक-चिक नहीं. हमारा होटल वाला पहले 50 डॉलर में होटल की बड़ी लिंकन गाडी में छोड़ने को बोला. हमने कम करने का कहा तो वो 40 डॉलर में तैयार हो गया। वहाँ से विमानतल पहुंचकर उड़ान पकड़ी और लॉस-एन्जेल्स पहुँचे। इस बार होटल की जगह एयर बीएनबी के माध्यम से रुकने की व्यवस्था की थी। रुकने की जगह थोड़ी सी शहर से हटकर थी। दो–तीन बार रुकने के अनुभव के बाद एक बात समझ आई कि परिवार साथ हो तो ही एयर बीएनबी के माध्यम से रुकने की जगह लेना चाहिए। ये एक घर होता है जहाँ का मालिक उस जगह को दो, चार, छः दिन के लिए एयर बीएनबी के माध्यम से किराए पर चढ़ा देता है. इसे हम किराए का घर ही बोलेंगे. इन जगहों पर होटल की तुलना में सुविधाओं में बहुत कटोती हो जाती है. मेरा अनुभव बताता है कि लॉस-एन्जेल्स में यदि किसी को रुकना है तो सिर्फ और सिर्फ हॉलीवुड बौलवार्ड में ही रुकना चाहिए। घर छोटा ही था. सुविधाओं की काफी कमी थी. शहर से दूर भी था. कुल मिलाकर मज़ा नहीं आया, उल्लू बन गए. कुछ भी हो आज के दिन समेत अगले चार दिन तो यहाँ ही रहना था. इसी में मज़े करो. घर में आकर सारा सामान खोला और व्यवस्थित जगह पर रखा. साथ लाए सामान में से कुछ खाना-पीना किया. आगे का जो भी कार्यक्रम था उसे समझा और पक्का करके रूपरेखा बना ली.

आज ही के दिन सबसे पहले ऑटोमोटिव म्यूजियम गए। बहुत पुरानी से लेकर अभी तक की और अमेरिकन फिल्मों में दिखाई गई गाड़ियाँ और मोटरसाइकिलें संग्रहीत करके रखी गई हैं. बहुत अच्छा प्रस्तुतीकरण है और ये जाने लायक जगह है। अमेरिकन व्यक्ति से वस्तुएँ और यादें संजोए रखने की कला सीखना चाहिए. वस्तु का महत्व थोड़ा बहुत भी हो उसे रखकर इस प्रकार से प्रस्तुत करेंगे कि देखने वाले को वस्तु रूचिकर लगने लगती है. इस प्रकार से ढेर सारी वस्तुएँ एक जगह रखकर उसे संग्रहालय का नाम और सूरत दे दी जाती है. कुछ समय के पश्चात् वो जगह प्रसिद्ध हो जाती है और पर्यटक आने लगते हैं. जगह चल पड़ती है.

शाम को मैं लॉस-एन्जेल्स के डाउन टाउन गया. रविवार होने के कारण सब तरफ बंद था. मुझसे गलती हो गई थी. डाउन टाउन की जगह हॉलीवुड बौलवार्ड जाना था. मैं वापस घर पर लौट गया. देवांग उसके दोस्त से मिलने चला गया था. देवांग आया तो हमने कुछ बनाकर खाया और सो गए.

दुनियाभर में पर्यटक स्थानों पर घूमने फिरने की बहुत सी जगह होती हैं. कोई दो दिन के लिए आता है तो कोई हफ्तेभर के लिए. पर्यटक की जरूरत को ध्यान में रखकर कई कंपनियाँ उन जगहों पर संपर्क करके कम भाव पर प्रवेश पत्र ले लेती है. उसके बाद अपने ग्राहक को चुनाव का मौका देती है कि कंपनी के पास इतनी ढेर सारी रूचिकर जगहें है. पर्यटक के पास जितने दिन हैं, उतने दिन के प्रवेश पत्र उपलब्ध जगहों के लिए दिए जाते हैं. यदि कोई ज्यादा दिन के पास चाहता है तो ज्यादा राशि ली जाती है. इसमें पर्यटक को कम राशि में ज्यादा से ज्यादा जगह जाने का मौक़ा मिल जाता है. हमने भी गो कार्ड कम्पनी के तीन दिन के प्रवेश पत्र ले लिए थे. ये एक अच्छा और सही कार्य रहा.

आज आठ तारीख को सबसे पहले यूनिवर्सल स्टूडियोज़ गए थे। हमारे गो कार्ड में ये जगह शामिल थी. वहाँ पर सभी राइड में कतार से हटकर पहले प्रवेश करने के लिए ‘फ़्लैश पास’ लिए, इसमें समय की बचत होती है और हम ज्यादा से ज्यादा राइड में बैठ सकते हैं। अति आधुनिक और अद्भुत 4डी राइड्स भी थी। इनमें सिनेमा, जाग्रत अनुभव, तकनीकी सभी का समागम था। नाम के लिए पिद्दु राइड्स भी थी, डिज़्नी जैसी। यूनिवर्सल स्टूडियोज़ खाने-पीने के लिए अच्छी पर बहुत महंगी जगह है। वहाँ से आकर हॉलीवुड बौलवार्ड स्थित मैडम तुसाड्स संग्रहालय और चीनी थिएटर गए। ये ‘वाक ऑफ़ फेम’ नाम की सड़क पर स्थित है. इस जगह पर सड़क के दोनों तरफ बने हुए खुबसूरत फुटपाथ पर पीतल में सितारा बनाकर हॉलीवुड की फिल्म इंडस्ट्री के नामचीन व्यक्तियों के नाम उकेरे हुए हैं. लॉस-एन्जेल्स में आकर यहाँ जाना जरुरी है. देर रात वापस कमरे पर आ गए। आज के दिन सुबह और शाम दोनों समय साथ लाया हुआ खाना और नाश्ता किया। अगले दिन वार्नर ब्रदर्स का ढाई घंटे का स्टूडियो टूर लिया. इतनी जानदार और शानदार प्रस्तुति  के लिए कोई शब्द नहीं है। आधुनिक तकनीकी का फिल्म बनाने में कैसे योगदान लेते हैं और फिल्म कैसे बनाते है इस बारे में अधिकतम जानकारी दी जाती है। पुरानी प्रसिद्ध फिल्मों के सेट्स आज तक लगे हुए हैं।

जब भी कोई हॉलीवुड की बात करता है तो लॉस-एन्जेल्स की पहाड़ी पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखे हुए HOLLYWOOD का ध्यान आता है. हमारा अगला पड़ाव वहाँ का था. इसके लिए हमने हाइक टूर लिया. हमारी गाइड भी बहुत अनुभवी थी. पूरा ग्रुप बहुत अच्छा था। ये जिंदगी का एक ना भूलने वाला अनुभव रहा। पहाड़ पर चढ़ते गए और चढ़ते गए। सभी में जबरदस्त उत्साह और रोमांच था. तीन घंटे के बाद ग्रिफिट ऑब्ज़र्वेटरी में हाइक का समापन हुआ। जिस प्रकार से उज्जैन शहर में जंतर-मंतर बना हुआ है. उसी प्रकार ग्रिफिट ऑब्ज़र्वेटरी वर्तमान का जंतर-मंतर है. उज्जैन और ग्रिफिट में जमीन आसमान का अंतर है. ग्रिफिट ऑब्ज़र्वेटरी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस है. अमेरिका में अन्तरिक्ष से सम्बंधित चल रहे कुछ कार्यों का यहाँ से भी प्रबंधन किया जाता है. जिस भी व्यक्ति को खगोलशास्त्र में रुचि हो उसके लिए ग्रिफिट ऑब्ज़र्वेटरी में एक महीने का समय भी कम है.

अगले दिन नौ तारीख को सुबह जल्दी उठकर हाइक पूरी करने के लिए घर से निकल गए। HOLLYWOOD अक्षरों को देखने के लिए ऊपर जाना एक रोमांचकारी अनुभव है। टेढ़ी मेढ़ी सड़कें और एकदम शांत वातावरण। कुछ लोग जाते हुए तो कुछ आते हुए मिले। इन अक्षरों के एकदम पास जाने की मनाही है। फिर भी काफी नजदीक तक जाया जा सकता है। वहाँ बहुत सारे फ़ोटो लिए। आज के दिन बहुत थक गए थे. थोड़ा जल्दी आकर रात का खाना खाया और सो गए।

लॉस-एन्जेल्स में आखिरी दिन 10 तारीख को सिक्स फ्लैग्स नाम के थीम पार्क गए। ये भी गो कार्ड में शामिल है किन्तु शहर से बहुत दूर है। यहाँ पर भी कतार में ना लगकर एकदम आगे आकर प्रवेश करने के लिए ‘एक्सप्रेस पास’ की सुविधा है. अंदर जाने का रास्ता छोटा और अलग होता है। लाइन में आगे ही आगे लगने को मिल जाता है। जैसा कि मैंने ऊपर बताया है, इसे जरूर लेना चाहिए. इसमें हम ज्यादा से ज्यादा राइड ले सकते हैं. हमारे टिकट के पूरे दाम वसूल हो जाते हैं. जितनी भी महत्वपूर्ण और रोमांचकारी राइड्स थी, वो सभी ढाई घंटे में खत्म कर दी, एक्सप्रेस पास का फायदा लिया। वहीँ पर खाना खाया और घर आ गए। अगले दिन सुबह जल्दी की उड़ान होने के कारण तीन बजे उठना था इसलिए जल्दी सो गए। 

आज ११ तारीख को मुँह अंधेरे तैयार होकर एयर बीएनबी के घर से चेक आउट किया, उबर बुलवाई और विमानतल के लिए निकल गए. हमें एयर मेक्सिको का विमान लेकर Cidade De Mexico यानी मेक्सिको देश की राजधानी मेक्सिको शहर जाना था. अमेरिका से जाते समय आव्रजन के समय और उसके पहले बहुत खरतनाक चेकिंग होती है। आव्रजन अधिकारी के सवालों में एक सवाल ये जरूर होता है कि क्या आपने अपना बेग कही बगैर निगरानी के छोड़ा था? क्या किसी अन्य व्यक्ति ने आपको किसीx कोई वस्तु ले जाने के लिए तो नहीं दी है? चार घंटे की उड़ान थी। पहले ही लिखकर देने के बावजूद खाने में सिर्फ नॉन वेज वस्तुएँ परोसी गईं। परिचारिका को कुछ जोर से और ज्यादा बोला तो वो बर्गर में रखा हुआ मांस का टुकड़ा निकालकर वेज बनाकर ले आई जैसे कि किसी जैन व्यक्ति जिसने की आलू प्याज का त्याग किया हो उसे साबूदाने की खिचड़ी में से आलू निकालकर खिला देते हैं। पूरे रास्ते में किताब पढ़कर टाइम पास किया। इस उड़ान में एक भी भारतीय चेहरा नज़र नहीं आया।

मेक्सिको देश – अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाला दुनिया का एक जाना पहचाना देश है. अमेरिका और मेक्सिको की एक ही लम्बी सीमा रेखा है. अमेरिका तरक्की में मेक्सिको से बहुत आगे है इसलिए प्रत्येक मेक्सिकोवासी का अमेरिका में जाकर रहना और कमाना सबसे बड़ा सपना होता है. सीमा पार करने के लिए ये लोग समस्त प्रयास करते हैं. चाहे जितना भी धन लग जाए एक बार तो सीमा पार करना ही है. अमेरिका की जनसंख्या में कम से कम ३ – ४ प्रतिशत व्यक्ति यानी लगभग 1.25 से 1.5 करोड़ वैध या अवैध रूप से आए हुए मेक्सिकोवासी रहते हैं.

हमें एक नया देश देखने की उत्सुकता थी। कई जगह पढ़ा हुआ है कि भारत और मेक्सिको की बातों और संस्कृति में समानता है. प्राचीन समय के भारत और मेक्सिको में कहीं कोई जुड़ाव है, ये देखना और समझना था. विमान से उतरने के बाद मेक्सिको में प्रवेश करने का अनुभव बहुत मजेदार रहा। आव्रजन की प्रक्रिया पूरी करके और सामान लेकर विमानतल के बाहर निकले। यहाँ पर भी उबर की टैक्सी ली और होटल पहुँचे. होटल नजदीक ही थी. होटल वाले ने बोला कि चेक-इन का समय दोपहर तीन बजे का है. उसके पहले कमरा खाली होगा तो उपलब्ध करवा पाएँगे. इंतज़ार करने के अलावा हमारे पास और कोई रास्ता नहीं था. चूंकि सुबह अमेरिका से तैयार होकर ही निकले थे इसलिए कोई समस्या नहीं थी. हमने साथ लाया सामान वहीँ रखा और समय का सदुपयोग करने के लिए आस-पास के स्थान देखने के निकल पड़े. हम डाउन टाउन में ही रुके थे इसलिए कहीं लम्बा नहीं जाना था. बाहर निकलते ही सब कुछ हाजिर था.

चारों तरफ देखकर एक बार तो लगा कि वापस भारत आ गए हैं। वहाँ के लोगों के चेहरे बिल्कुल भारतीयों जैसे दिखते हैं। बातचीत का लहजा, पहनावा सब हमारे जैसा। बस एक बड़ा अंतर कि वहाँ पर बड़े स्तर पर मांसाहार प्रयोग में आता है. वेज खाने को मिला पर सही बोलें तो सिर्फ पेट भरा. अच्छे खाने के लिए तरस गए। फीका खाना होता है। खाने में भारत जैसे किसी भी मसाले का प्रयोग नहीं किया जाता है। कहने के लिए मेक्सिको की चिली चटनी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है पर उसमे भारत की मिर्ची जैसा स्वाद नहीं होता है। हम भारत से ही नमक, लाल मिर्ची, निम्बू और प्याज लेकर गए थे। उन्हीं के भोजन में अपने स्वादानुसार मसाले डालकर खाना तैयार करके खाया और संतुष्टि पाई। इस देश में खाना पीना और वस्तुएँ सस्ती है. इनके भाव करीब-करीब भारत जैसे ही हैं. यदि अंतर्राष्ट्रीय प्रसिध्द ब्रांड का सामान खरीदना हो तो भाव कम नहीं होते हैं.

प्लाज़ा रिपब्लिक नाम की जगह मेक्सिको का इंडिया गेट है. यहाँ का एक बड़ा इतिहास इससे जुड़ा हुआ है. वर्तमान में मेक्सिको के इतिहास के बारे में यहाँ बताया और दिखाया जाता है. यहाँ आकर इस देश के बारे में बहुत कुछ जाना. दोपहर हो चली थी और हल्की से भूख लगने लगी थी. प्लाज़ा रिपब्लिक से निकल कर आस-पास थोड़ा घूमे, उबला और मिर्ची डाला हुआ भुट्टा खाया। पेट भर गया। होटल पहुँचकर कमरे में चेक-इन किया और सामान जमाया. अपने साथ लाए खाने में से कुछ वस्तुएँ निकालकर हल्की पेट पूजा की. सुबह जल्दी के जगे हुए थे इसलिए कुछ सुस्ती छाई हुई थी. घंटा भर आराम कर लिया. उसके बाद देखा की तोx शाम ढल चली थी. मेक्सिको शहर की नाईट लाइफ देखने के लिए पुनः होटल से बाहर निकल गए. ये देश आधुनिक और खुलेपन का अहसास लिए हुए है. पब, बार, डिस्को, रेस्टोरेंट्स बहुत हैं. सड़कों पर तेज रफ़्तार और तेज आवाज करती हुई गाड़ियों में घूमना यहाँ का शौक है. महिला और पुरुष के रिश्तों में बहुत खुलापन है. देर रात तक शहर में घूमते हुए मेक्सिको को देखा और समझा. उसके बाद होटल लौटकर सो गए.

मेक्सिको में दूसरे दिन 12 तारीख को सुबह यहाँ के इतिहास को जानने के लिए हिस्ट्री वाक-इन टूर लिया। टूर ढाई घंटे का था. तेज घूप पड़ने के बावजूद भी मज़ा आ गया। मेक्सिको के बारे में बहुत सी जानकारियाँ मिली. कई बार मन में ख्याल आया कि इनके और हमारे इतिहास में कुछ सामंजस्य है। उसके बाद वहाँ की एक मुख्य सड़क पर गए। दुनिया भर के प्रसिद्ध ब्रांड के शोरूम हैं। पूरी तरह से भारत जैसे माहौल था. ‘आओ बहनजी’, ये कहकर ग्राहक को आकर्षित करते हुए ढेर सारे सेल्समैन रहते हैं। यहीं पर चीन और रूस के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा चोक स्थित है। देवांग ने यहाँ से जूते खरीदे। दोपहर हो चली थी. वहाँ से वापस होटल आकर पेट पूजा की। कुछ देर आराम करने के बाद मेक्सिको के सबसे बड़े शॉपिंग मॉल ‘अंटारा’ गए। दुनियाभर के सभी ब्रान्डों के शोरूम यहाँ पर हाजिर हैं। मेक्सिको एक सस्ता देश होने के बावजूद भी ब्रांडेड वस्तुओं की कीमत में कोई कमी नहीं है। सफोरा के कॉस्मॉटिक्स शो रूम पर गए। अच्छी गुणवत्ता होने के कारण बहुत सारा सामान खरीदा। ज़ारा का शोरूम देखकर लगा कि इनके सामान के भी भाव ठीक-ठाक हैं। आगे से इनके यहाँ से भी सामान ले सकते हैं। टॉमी हिलफिगर का सामान महंगा है। अच्छे ब्रांड के जूते भारतीय रुपयों में 10000 के हो गए हैं। रात को इधर-उधर भटककर वापस होटल आए। अगले दिन सुबह जल्दी उठकर घूमने भी जाना था। चेक आउट भी करना था। पूरा सामान पैक किया और सो गए।

आज 13 तारीख को सुबह जल्दी उठे और तैयार होकर मेक्सिको के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए 80 किलोमीटर दूर स्थित पिरामिड देखने गए। वहाँ एक अच्छा गाइड मिल गया था। मेक्सिको के बारे में उससे बहुत कुछ जाना और समझा। मन में बार-बार एक ही ख्याल आता है कि कहीं कोई कड़ी है जो कि भारत और मेक्सिको को जोड़ती है। पिरामिड के ऊपर तक गए और बहुत से फ़ोटो लिए। दोपहर हो चली थी. शाम को वापस अमेरिका भी लौटना था। यहाँ से पुनः लौट चले. मेक्सिको के डाउन टाउन में हमारी होटल के नजदीक की मुख्य सड़क पर अच्छा दृश्य देखा. रविवार होने के कारण उस सड़क को चारों तरफ से बंद कर दिया था। यहाँ पर सब तरफ मौज-मस्ती हो रही थी। छूट्टी के दिन का जश्न मनाया जा रहा था. ऐसा इंदौर में भी रविवार को सयाजी के सामने वाली सड़क पर होता है। होटल से चेक आउट करके, कुछ जल्दी ही विमानतल के लिए निकल गए। चेक इन किया, बोर्डिंग पास लिए, सिक्योरिटी निपटाई और इमीग्रेशन क्लियर किया। सब कुछ फटाफट हो गया। एक जगह पर लाउन्ज का बोर्ड देखकर अंदर गए। वहां पर प्रायोरिटी क्लब का कार्ड मान्य था। अंदर चले गए। सबसे पहले फुल बॉडी मसाज करवाई, शावर लिया। पूरी तरह से थकान उतर गई। लाउन्ज में ही खाना सजा हुआ था। खाना खाकर कुछ देर आराम किया। हमारी उड़ान में डेढ़ घंटे की देरी थी। समय कब और कैसे कट गया पता ही नहीं चला। अपने संग्रह के लिए विमानतल से ही मैक्सिको की सबसे प्रसिद्ध शराब ‘टकीला’ की एक बोतल ली। उसके बाद हवाई जहाज में बैठकर अमेरिका के लिए उड़ गए।

सेन-फ़्रांस्सिस्को पहुँचकर पुनः उसी होटल में चेक इन किया और क्लोक रूम में जमा किया हुआ लगेज लिया. कुछ सामान जो ऑनलाइन खरीदा था वो पीछे से होटल पर आ गया था। उसे भी प्राप्त किया और कमरे में जाकर सामान की पैकिंग की। देर रात हो गई थी. अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मुझे भारत के लिए और देवांग तो साल्ट लेक सिटी के लिए निकलना था।

आज 14 तारीख हो गई थी. समय पर उठे और तैयार होकर आज भी भारत से लाया हुआ नाश्ता किया. होटल से चेक आउट किया, उबर की टैक्सी बुलवाई और विमानतल के लिए निकल गए। देवांग का और मेरा टर्मिनल अलग अलग था। मेरा टर्मिनल पहले आया और मैं उतर गया। बहुत दिनों तक साथ रहे, मौज मस्ती की थी. अब विदाई का समय आ गया. देवांग ने झुककर धोक दी. मन भारी हो गया था। देवांग गाड़ी में बठकर उसके टर्मिनल की तरफ चला गया. मैंने भी अपने सामान को लिया और विमानतल के अन्दर चला गया. सामान बहुत ज्यादा था। दोनों बेग भारी थे। अतिरिक्त वजन के उसने 150 डॉलर मांगे। मैंने अपना सारा सामान एयरलाइन्स के नियम के अनुसार जमाया. इसमें मुझे कुछ भी राशि अतिरिक्त नहीं देनी पड़ी.

विमानतल की एक ड्यूटी फ्री शॉप पर मेरा मनपसंद परफ्यूम दिख गया तो उसे खरीद लिया। उसकी डिलीवरी का पूछा तो काउंटर पर बताया कि सामान बोर्डिंग गेट पर ही मिलेगा। ये व्यवस्था पहली बार देखी। वहीं पर केथे पेसिफिक एयरलाइन्स का लाउंज था पर सिर्फ बिज़नेस क्लास के यात्रियों को ही प्रवेश दिया जाता है। काउंटर पर खड़े व्यक्ति ने बताया कि विमानतल पर दूसरी एयर लाइन के लाउंज भी हैं जो कि प्रायोरिटी पास के कार्ड स्वीकार करते हैं। आश्चर्य हुआ, वहाँ पर प्रवेश मिल गया। खाना-पीना और आराम अच्छे से हो गया। इंटरनेशनल टर्मिनल से केथे पेसिफिक की फ्लाइट पकड़कर हांगकांग पहुंचे। सीट नंबर 71H पहले ही ले लिया था। बहुत ही आरामदायक सीट है. बाजू वाली सीट ना होने के कारण 71H के यात्री को 2 सीट के बराबर तीनो तरफ़ जगह मिलती है। साढ़े 14 घंटे की फ्लाइट में समय कब निकल गया पता ही नहीं चला। एक बात समझ में आई कि जब भी ऑन-लाइन चेक-इन करो तो पहले ये देखो कि हवाई जहाज कौन सा है। उसके बाद विमान की सीटों की जमावट का नक्शा देखो और सीट नंबर चुनो। फिर एयरलाइन्स की वेबसाइट पर जाकर ये जानकारी पक्की करो। एयरलाइन्स कई बार सीटों का गलत नक्शा देती है। दोनों को मिलान करके सीट का चयन करो। मैंने 71H को ऐसे ही चुना था। 

निकलने के समय ही विमान देर से उड़ा। इसी वजह से हमारी फ्लाइट भी देर से हांगकांग पहुँची। दिल्ली को जाने वाली फ्लाइट का उड़ने का समय हो गया था इसलिए हमें हांगकांग से एक अन्य विमान द्वारा बेंगलुरु भेजा गया। इस उड़ान का समय दिल्ली की उड़ान से लगभग एक घंटा आगे का था। आधे से ज्यादा विमान खाली था। समझ में आ रहा था कि नई उड़ान चालू हुई है। पूरी चार सीटों को एक करके लंबी लेट लगाकर सोते हुए आया। 

एक ख्याल आया कि हम अंतरराष्ट्रीय उड़ान लेते समय सिर्फ मुम्बई और दिल्ली से ही कनेक्शन का ध्यान रखते हैं। ये गलत है। अन्य शहरों के कनेक्शन को भी जाँच लेना चाहिए। अमेरिका जाने के लिए केथे की बेंगलुरु वाली उड़ान ली जा सकती है। शायद किराया भी कम लगता होगा।
उसके बाद एयरलाइन्स ने ही बेंगलुरु से जेट के माध्यम से दिल्ली भेजने की व्यवस्था की। बेंगलुरु में विमान से उतरते ही एक व्यक्ति हमारे साथ हो लिया। डिप्लोमैटस काउंटर से आव्रजन की प्रक्रिया पूरी की। उस व्यक्ति ने सामान लेने में भी मदद की। वो व्यक्ति साथ होने के कारण कस्टम ने भी बगैर पूछताछ के जाने दिया। वहाँ से सीधे जेट के काउंटर पर जाकर सामान दिया। थोड़ा वजन ज्यादा होने के बावजूद भी बगैर ना-नुकुर करे उन्होंने सामान ले लिया। केथे पेसिफिक एयरलाइन्स का आदमी हमको गेट तक छोड़ने आया। समय के अंदर ही विमान में बैठ गए। बहुत दिनों से भारतीय भोजन नहीं किया था। इच्छा थी कि बेंगलुरु में आकर लज़ीज़ दक्षिण भारतीय व्यंजन का लुत्फ लेंगे पर समय के अभाव के कारण इच्छा धरी की धरी रह गई। सुबह 4.20 पर दिल्ली पहुँचे। T2 पर जेट की उड़ान आई। सामान लेकर T1 पर इंडिगो की उड़ान के लिए गए। चेक इन करवाया। अंतर्देशीय उड़ान पर चेक इन लगेज 15 किलो ही मान्य किया जाता है। दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर 23 किलो के 2 बैग मान्य किए जाते हैं। ऐसे में सामान के वजन के संबंध में बहुत दिक्कत आती है। इसके लिए भारतीय विमान कंपनियाँ 8किलो, 15 किलो और 30 किलो के 3 ऑफर देती हैं। 23 किलो का एक सामान है तो 15 के बाद 8 किलो अतिरिक्त ले लो, कुछ ज्यादा है तो 15 किलो का आफर ले लो और 2 लगेज हैं तो 30 किलो का ले लो। 15 किलो तो एयरलाइन्स देती ही है और 30 जोड़ कर 45 किलो हो जाता है उसमें यात्री के दोनों सामान आ जाते है। 8 किलो के 250 रुपए, 15 किलो के 500 रुपए और 30 किलो के 1500 रुपए लगते है, जो कि बहुत वाजिब हैं।
मेरे पास 2 सूटकेस 23-23 किलो के थे और मैंने 1500 रुपए देकर 30 किलो वाला ऑफर ले रखा था। चेक-इन में कोई दिक्कत नहीं आई। इंदौर की उड़ान में समय था. वही प्रायोरिटी पास का उपयोग करके लाउन्ज में जाकर पहले तो फ्रेश होकर नहा लिया। उसके बाद दक्षिण भारतीय नाश्ता किया।

और अंत में, अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामकाज के प्रयोग में और समझी जाने वाली भाषा है। आपके पास मोबाइल, डाटा कार्ड और क्रेडिट (डेबिट कार्ड नहीं) कार्ड है तो समस्त सुविधाएँ है। कोई समस्या आपके पास फटकेगी भी नहीं। 

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